वो माँ का लोरी गाकर सुलाना,
वो बिन माँगे सब मिल जाना,
बहुत याद आता है.....
वो घुटनों के बल चलना,
खड़े होने की कोशिश में
उठना गिरना फिर उठकर चलना
बहुत याद आता है.....
वो दादी-नानी की गोदी
वो प्यारे मामा वो प्यारी मौसी
बहुत याद आता है.....
वो रोटी बनाती माँ, वो धुँए वाला चूल्हा,
वो पापा की गोद वाला झूला
बहुत याद आता है.....
वो स्कूल के नाम पे रोना,
मना करना, वो माँ बाप का जबरदस्ती करना,
बहुत याद आता है.....
वो छुट्टी की घंटी की आवाजें,
वो गाँव में शादी के बैंड बाजे,
बहुत याद आता है.....
वो गाँव के कुंए का मीठा पानी,
सोने से पहले नानी सुनाती थी कहानी,
बहुत याद आता है.....
वो भाइयों से आपस में लड़ना झगड़ना,
छोटी छोटी बातों पे कई दिन तक बिगड़ना,
बहुत याद आता है.....
वो जल्दी से बड़े होने की चाहत,
वो बचपन पर जवानी के कदमों की आहट,
बहुत याद आता है.....
वो बचपन का आकर्षण,
वो पहला पहला प्यार,
वो डर वो बेताबी वो सपने
वो इनकार कभी इकरार,
बहुत याद आता है.....
वो जवानी का आना, ना किसी से घबराना,
दोस्तों के संग रहना और घर देर से जाना,
बहुत याद आता है.....
और अब सपनों का पीछा करते करते सबसे दूर हो गया,
दिल का हाल किसे बताऊँ कितना मजबूर हो गया।
लेकिन.......
माँ तेरे हाथ का खाना,
पापा का प्यार से समझाना,
बहुत याद आता है.....
एक छत के नीचे साथ में रहना,
कभी सबकी सुनना कभी अपनी कहना,
बहुत याद आता है.....
भाई तेरे साथ वक़्त बिताना,
देर रात को छत पर जाना,
छोटी सी बात पे घंटों चर्चा करना,
रात के तीसरे पहर तक जागा करना,
बहुत याद आता है.....
माँ तुम्हारा ममता वाला प्यार,
पापा की डाँट में दुलार,
भाई से छोटी छोटी तकरार,
वो अपना घर, वो प्यारा सा संसार,
बहुत याद आता है.....
बहुत याद आता है.....
बहुत याद आता है.....
“प्रवेश कुमार”