Thursday 31 March 2016

मगर खुद कभी झाँककर आईना नहीं देखा


जब से उसको देखा कोई और मंजर नहीं देखा,
साहिल पे रहा मगर मैंने समंदर नहीं देखा।
ढूंढता रहा वो हमेशा मेरी ही आँख में तिनका,
मगर खुद कभी झाँककर आईना नहीं देखा।
उसने आजमा कर बहुत देखा मुझे, मगर ,
अच्छाइयाँ भूला दी अच्छाइयों के साथ नहीं देखा।
वो तैरना जानता था नदी तो पार कर दी उसने,
मगर ऊपर ऊपर ही रहा गहराइयों में उतरकर नहीं देखा।
कैसे कहेगा वो कि दुनिया में हैं खुशियाँ बहुत ,
उसने जिन्दगी में कभी तितली के पीछे भागकर नहीं देखा।
कांधे पे हाथ रखने से क्या होगा कोई मुझसे पूछे ,
वो क्या जाने इश्क़ जिसने रातों में जागकर नहीं देखा।
ये मेरी दिल्लगी थी कि मैं उसे अपना कहता रहा,
मगर एक उसकी दिल्लगी मुझे कभी अपना कहकर नहीं देखा।

Tuesday 29 March 2016

HINDU MYTHOLOGY

In the Hindu mind there is a fear that semen energy is great energy -- even if a single drop is lost, you are lost. This is a very constipatory attitude -- hoard it! Nothing is lost! You are such a dynamic force, you go on creating that energy every day. Nothing is lost.
The Hindu mind is too much obsessed with VEERYA -- with semen energy. Not a single drop should be lost! They are continuously afraid.
So if at all they make love, then they feel very much frustrated, very much depressed, because they start thinking so much energy is lost.
NOTHING is lost. You don't have a dead quota of energy; you are a dynamo -- you create energy, you create it EVERY day.
In fact, THE MORE YOU USE IT, THE MORE YOU HAVE IT......
USE ALL THAT HAS BEEN GIVEN TO YOU BY GOD and you will have MORE of it!
"OSHO"

Monday 28 March 2016

गया था मन्दिर में दुआओं की ख़ातिर मैं


कभी कुछ दिन ऐसे भी गुजारे जाते हैं,
फूलों में हाथ डालो काँटे हाथ आते हैं।
गया था मन्दिर में दुआओं की ख़ातिर मैं,
वहाँ भी उपदेशक सिर्फ किस्से सुनाते हैं।
अब सोचता हूँ किस सिम्त किस दिशा जाऊँ,
जहाँ जाता हूँ लोग मुझे अलग छांटते हैं।
मैं खुद ही लुट जाऊँगा कोई प्यार से तो बोले,
इस दुनिया के लोग अकड़ भी दिखाते हैं बलि भी मांगते हैं।
सियासत के खेल से बच सको जितना बचना  "प्रवेश",
इसमें आदमी से ही आदमी को काटते हैं।

Friday 25 March 2016

गीले बालों को उसने झटका यूँ सलीके से



गीले बालों को उसने झटका यूँ सलीके से ,
सुलगते अरमानों पे पड़ गए ठंडे छींटें से।
संगमरमरी बदन पे डाले उसने जो मलमली कपड़े,
देखा है उसको आज हर शख्स ने अलग तरीके  से।
गुजरा है वो यहाँ से हर चीज़ गवाही देती है,
वीरान सड़कें, उजड़े गुलशन ये गुल फीके से।
सदाबहार किसको कहते हैं हमने जाना, जबसे देखे ,
ऊँचा कद , पतली गरदन , चढ़ता यौवन, नैन-नक्श तीखे से।

Thursday 24 March 2016

पहले तुझे मेरी कद्र हो जाती



मेरे मरने से पहले तुझे मेरी कद्र हो जाती,
तो शायद थोड़ी और लम्बी मेरी उम्र हो जाती
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तेरे मेरे बीच बस दो गज का फासला है,
तू मुझको समझ लेती तो मुझको नसीब ये कब्र न होती
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रोक लेती मेरे आंसुओं को तू मेरे मरने से पहले,
मेरी कब्र पर बैठकर तू इस कदर ना रोती
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मुझको दफ़नाने से पहले गर तू सीने से लगा लेती,
मैं उठकर तेरा हो जाता तू मेरी हो जाती
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Tuesday 22 March 2016

मौत मुझे मेरी ही जान दे गई



हर एक राह मुझे दगा दे गई,
ज़िन्दगी जाते जाते सज़ा दे गई
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आँखों में अश्कों का मंजर देखकर,
मौत भी वादा-ए-वफ़ा दे गई
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तोहफे देने का अजीब शौक था उसको,
मुझे तोहफे में दो गज जगह दे गई
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ना रो सकूं ना सो सकूं मैं,
एक ऐसा वीरान लम्हा दे गई
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धुआं धुआं हो गए अरमान मेरे,
कब्र मेरी ऐसे शमशान दे गई
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खून के सागर अब तेज़ाब हो गए,
मौत मुझे मेरी ही जान दे गई
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