सम्पूर्ण जीवन का सिर्फ़ एक मंत्र : ॐ
और वह एक बाहर नहीं है, भीतर है।
कमरे को बिलकुल खाली रखो। जितना शून्य हो, उतना अच्छा है; क्योंकि इसी शून्य की भीतर तलाश है। कमरा छोटा हो, क्योंकि मंत्र में उसका उपयोग है; और खाली हो, उसका भी उपयोग है। आंख आधी खुली रखना; आधा संसार की तरफ बंद और आधा अपनी तरफ खुले, आधी आंख खुले होने का यही अर्थ है कि आधा संसार देख रहे हैं, आधा अपने को।
अपनी नाक के शीर्ष भाग को देखते रहना। बस, उतनी ही आंख खोलनी है। अब ॐ का पाठ जोर से शुरू करना - शरीर से, क्योंकि शरीर में तुम हो। तो जोर से ॐ की ध्वनि करना कि कमरे की दीवालों से टकराकर तुम पर गिरने लगे। इसलिए खाली जरूरी है। खाली होगी तो प्रतिध्वनि होगी। जितनी प्रतिध्वनि हो उतनी लाभ की है।
जोर से ॐ..ॐ... जितने जोर से कर सको; क्योंकि शरीर का उपयोग करना है। ऐसा लगने लगे कि तुमने अपनी पूरी जीवन - ऊर्जा ॐ में लगा दी है। इससे कम में मंत्र नहीं होता। दांव पर लगा देना - जैसे सिंहनाद होने लगे। आधी आंख खुली, आधी बंद, जोर से ओम का पाठ।
इतने जल्दी - जल्दी ॐ कहना कि ओवरलैपिंग हो जाये। एक मंत्र - उच्चार के ऊपर दूसरा मंत्र - उच्चार हो जाये। दो ॐ के बीच जगह मत छोडना। सारी ताकत लगा देना। थोड़े ही दिनों में तुम पाओगे कि पूरा कक्ष ॐ से भर गया। तुम पाओगे कि पूरा कक्ष तुम्हें साथ दे रहा है; ध्वनि लौट रही है। अगर तुम कोई गोल कक्ष खोज पाओ तो ज्यादा आसान होगा।
जब चारों तरफ से ओंकार तुम पर बरसने लगेगा, लौटने लगेगा तुम्हारी ध्वनि वर्तुलाकार हो जायेगी, तुम पाओगे कि शरीर का रोआं - रोआं प्रसन्न हो रहा है; रोएं रोएं से रोग झड़ रहा है; शांति, स्वास्थ्य प्रगाढ हो रहा है। तुम हैरान होकर पाओगे कि तुम्हारे शरीर की बहुत - सी तकलीफें अपने - आप खो गयीं।
शरीर ध्वनि का ही जोड़ है। और ओंकार से अद्भुत ध्वनि नहीं। यह दस मिनट ओंकार का उच्चार जोर से, शरीर के माध्यम से, फिर आंख बंद कर लेना, ओंठ बंद कर लेना, जीभ तालू से लग जाए, इस तरह मुंह बंद कर लेना। क्योंकि अब जीभ या ओंठ का उपयोग नहीं करना है।
दूसरा कदम है, दस मिनिट तक अब ॐ का उच्चारण करना भीतर मन में। अभी तक कक्ष था चारों तरफ, अब शरीर है चारों तरफ। दूसरे दस मिनिट में अब तुम अपने भीतर मन में ही गुजारना। ओंठ का, जीभ का, कण्ठ का कोई उपयोग न करना। तीव्रता वही रखना। जैसे तुमने कमरे को भर दिया था ओंकार से, ऐसे ही अब शरीर को भीतर से भर देना ओंकार से - कि शरीर के भीतर ही कंपन होने लगे, ॐ दोहरने लगे, पैर से लेकर सिर तक। और इतनी तेजी से यह ओम करना है, जितनी तेजी से तुम कर सको और दो ॐ के बीच जरा भी जगह मत छोड़ना क्योंकि मन का एक नियम है कि वह एक साथ दो विचार नहीं कर सकता।
ध्यान रखना, शरीर का उपयोग नहीं करना है इसमें। आंख इसलिए अब बंद कर ली। शरीर थिर है। मन में ही गज करनी है। शरीर से ही टकराकर गज मन पर वापस गिरेगी, जैसे कमरे से टकराकर शरीर पर गिर रही थी। उससे शरीर शुद्ध हुआ; इससे मन शुद्ध होगा। और जैसे—जैसे गज गहन होने लगेगी, तुम पाओगे कि मन विसर्जित होने लगा। एक गहन शांति, जैसी तुमने कभी नहीं जानी, उसका स्वाद मिलना शुरू हो जायेगा।
दस मिनिट तक तुम भीतर गुंजार करना। दस मिनिट के बाद गर्दन झुका लेना कि तुम्हारी दाढी छाती को छूने लगे।
तीसरे चरण में दाढ़ी छूने लगे; जैसे गर्दन कट गयी, उसमें कोई जान न रही। और अब तुम मन में भी गुंजार मत करना ॐ का। अब तुम सुनने की कोशिश करना; जैसे ओंकार हो ही रहा है, तुम सिर्फ सुननेवाले हो, करनेवाले नहीं। क्योंकि मन के बाहर तभी जा सकोगे, जब कर्ता छूट जायेगा। अब तुम साक्षी हो जाना। अब तुम गर्दन झुकाकर यह कोशिश करना कि भीतर ओंकार चल रहा है।
अब तुम सुनने की कोशिश करना। अभी तक तुम मंत्र का उच्चार कर रहे थे; अब तुम मंत्र के साक्षी बनने की कोशिश करना। और तुम चकित होओगे कि तुम पाओगे कि भीतर सूक्ष्म उच्चार चल रहा है। वह ॐ जैसा है ठीक ॐ नहीं है। तुम अगर शांति से सुनोगे तो अब वह तुम्हें सुनायी पड़ेगा।
पहले मंत्र के प्रयोग ने तुम्हें शरीर से काट दिया। दूसरे मंत्र के प्रयोग ने तुम्हें मन से काट दिया। अब तीसरा मंत्र का प्रयोग साक्षी - भाव का है।
और इसलिए ओंकार से अद्भुत कोई मंत्र नहीं है। ॐ से अद्भुत कोई मंत्र नहीं है। ॐ अरूप है। ॐ बिलकुल अर्थहीन है। ओम बड़ा अनूठा है। यह वर्णमाला का हिस्सा भी नहीं है। और यह निकटतम है उस ध्वनि के, जो भीतर सतत चल रही है; जो तुम्हारे जीवन का स्वभाव है।
तुम्हारा होना ही इस ढंग का है कि उसमें ॐ गूँज रहा है। वह तुम्हारे होने की ध्वनि है -- 'दि साऊंड ऑफ यूअर बीइंग।’
"ओशो"