Thursday, 26 November 2015

दोस्तों की सबकी शादी लगी होने

दोस्तों की सबकी शादी लगी होने,
मेरी अब उम्र लगी गुजरने
मेरे माथे पर लकीरों का घेरा,
दोस्तों के सर पर शादी का सेहरा,
सूखे फूल भी महकने लगे वहां
मेरा मुरझाने लग गया चेहरा
वहां पर है संगीत-ए-ख़ुशी
मेरे घर पर है गम-ए-शायरी,
मैं रह गया कुंवारा अकेला
झूठी लगने लग गई दोस्ती यारी
जब वहां बजने लगी शहनाई
मेरे दिल पर बिजली सी गर्जाई,
उनके आँगन में हो गई रौशनी
मेरी ज़िन्दगी में काली अमावास आई
वहां थी रात सुहाग वाली,
मैं करवट बदलता रहा रातभर,
वो मनाने लगे रोज दिवाली
पटाखों से जल गया मेरा शहर
किसी को मिली बाइक हौंडा
कोई चलाने लग गया हौंडा कार,
घरवाले दांत पीसने लगे मुझपर
मैं लगने लग गया उन्हें बेकार
कुछ वक़्त बीता है शायद एक-दो साल
आधे दोस्त शकल से लगते है फटेहाल,
कुछ चल रहे हैं संभल-संभलकर
मगर हम है अब तक खुशहाल
हम भी ये लड्डू खायेंगे मगर
इंतजार है कब सही वक़्त आए,
क्योंकि जो खावे वो भी पछतावे और
जो न खावे वो भी पछतावे


Parvesh Kumar

ये इच्छा है मेरे माँ-बाप की

देख कर जिसको भड़के शोले
दिल में दहके अँगारे,
दुश्मन का नामो निशां मिटा दे
ना कभी किसी से हारे
ये है वर्दी एक जवान की..
मैं भी कभी ये वर्दी पहनूं
ये इच्छा है मेरे माँ-बाप की
पापा है मेरे फ़ौज में,
सब कहते है मैं हूँ मौज में,
कोई क्या मुझको जानेगा,
दिल की हालत पहचानेगा
हम भी चाहते है वर्दी आन की
मैं भी कभी ये वर्दी पहनूं
ये इच्छा है मेरे माँ-बाप की
गम में आंसू बहाते हैं सब
कौन खुशियों में रोता है,
अच्छी किस्मत जिसकी होती
वतन के लिए वो ही मरता है
हम भी चाहते हैं मौत शान की..
मैं भी कभी ये वर्दी पहनूं
ये इच्छा है मेरे माँ-बाप की


Parvesh Kumar

Wednesday, 25 November 2015

बहुत देख लिया तूने चाँद को “प्रवेश”

मेरी छत से जब जुगनू होकर गुजरते हैं,
मेरे दिल में तब तेरी याद के दर्द उभरते हैं
शबे-वस्ल को भुला नहीं हूँ मैं अब तक,
उन्हें याद करके अब हिज्र के दिन गुजरते हैं
हर महफ़िल में जिनके वादों के चर्चे थे,
अब वो बज़्म में अपने वादों से मुकरते हैं
वो कहते हैं नहीं कोई रिश्ता हमसे तुम्हारा,
मैं दिल को बहला रहा हूँ कि वो मजाक करते हैं
बहुत देख लिया तूने चाँद को “प्रवेश”,
रात कट जाएगी चल अब तारों को गिनते हैं
Parvesh Kumar