Friday, 4 December 2015

फेर म्हारे बीच में होया प्यार

म्हारे बीच में होया प्यार
जब मैं बनग्या उसका यार
घनी पुराणी बात है,
काली घनी रात थी,
सफ़र मेरा था कती अकेला,
फेर राह में एक नार मिली,
हाथ देके लिफ्ट मांगी,
जीन्स टॉप में थी तयार खड़ी
जब गाडी टॉप गेर में लाई,
वा हांस के बोली बतलाई,
बात बातां में माँगा नंबर,
तारिख थी उस दिन तीन सितम्बर
जब फ़ोन पे भीडे म्हारे तार,
फेर म्हारे बीच में होया प्यार
मैं बनग्या फेर उसका यार..................
रात दस बजे मन्ने फोन मिलाया ,
दो घंटी बाजे पाछे फोन ठाया,
उस दिन बूंदा बांदी होवे थी,
वा पड़ी चादर में सोवे थी,
वा मेरे खयाला में खोरी थी,
न्यू मन्ने बैचेनी होरी थी
घर पे उसके था कोई भी कोन्या,
खड़ा होया मेरा ज़ालिम खिलौना,
वा घरा बुलाण ने होगी तयार
फेर म्हारे बीच में होया प्यार
मैं बनग्या फेर उसका यार....................
ग्यारा बजे मैं उसके घरा गया,
फेर म्हारी खो गई शर्म हया,
कोली भरके बेड पे पड़ग्या
जुकर मिठाई पे मकोड़ा गड्ग्या

होठा-होठा सफ़र शुरू करा
फेर सेज सेज नीचे उतरा
एक राजा था दो सिपाई,
दो पहाड़ा बीच करी घुलाई
हम दोनूं होए कती लाचार,
फेर म्हारे बीच में होया प्यार,
मैं बनग्या फेर उसका यार....................
मन्ने तोड़ी फेर गुलाब कली
जुकर संतरे की फाड़ खुली,
आगे आई एक छोटी गुफा
राजा छोड़ सिपाई, उड़े घुसा
राजा जब भीतर चला गया,
सिपाई बोले राजा कड़े गया
राजा ने मिलगी रानी थी
या ख़त्म हुई कहानी थी,
‘प्रवेश शर्मा’ ने करया था यो करार,
फेर म्हारे बीच में होया प्यार
मैं बनग्या फेर उसका यार...................


Thursday, 3 December 2015

मेरे सनम काश तू मुझको समझ लेता

प्यार के दर्द से चल रही है ज़िन्दगी,
बूंद बूंद बर्फ जैसे पिघल रही है ज़िन्दगी
एक वादा था जो अंजाम तक ना पहुँच सका,
मौत के सांचे में अब ढल रही है ज़िन्दगी
मेरे सनम काश तू मुझको समझ लेता ,
अब रेत की तरह हाथ से फिसल रही है ज़िन्दगी
किस हक से अब तुझको पुकारूं ये बता,
शर्म के बोझ तले अब दब रही है ज़िन्दगी
कुछ गलतियाँ तेरी हैं कुछ खता मेरी भी है,
टुकड़ो-टुकड़ो में अब मेरी बंट रही है ज़िन्दगी
जहा भी रहना तू रहना सलामत,
तेरी बढ़ रही है मेरी घट रही है ज़िन्दगी
तू अपनी ज़िन्दगी संवार मेरे कुसूर न गिन,
जैसे तैसे चल रही है, मेरी चल रही है ज़िन्दगी
क्यूँ फर्क पड़ता है तुझे मेरे बर्बाद होने से,
जो तेरी थी अब वो मेरी हो रही है ज़िन्दगी
है तुझसे इश्क़ मुझे अब भी मेरे सनम,
पर तेरे लिए अब बोझ, मेरी हो रही है ज़िन्दगी
तुम ना रोना एक दिन मर जायेगा ‘प्रवेश’,
मौत है सस्ती, यहाँ महंगी बहूत हो रही है ज़िन्दगी

भूलना चाहता हूँ मैं उसकी यादें

हँसने दे मुझे हँसने दे,
रोने को रात काफी है.
तड़प रहा हूँ प्यार में जिसके ,
उसको एहसास दिलाना बाकी है,
धोखा दिया है हर शख्स ने,
मयखाना है साथ या फिर साकी है
भूलना चाहता हूँ मैं उसकी यादें,
जो मेरी तन्हाई की साथी है
सब दवा और दुआ बेकार है मुझपर,
जीने के लिए उसका एहसास काफी है,
अब देखना है उसको आबाद होते हुए ,
जो कहती है मरना मेरा बाकी है