Wednesday, 3 February 2016

हाथ रोज उठता हूँ दुआओ की खातिर



रातें सोती हैं मैं कहाँ सो पाता हूँ
बैचेन रहता हूँ चैन से कहाँ सो पाता हूँ
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सिसकियों की आवाज़ गूंजती है कानो में
टपकती है आँखें पर मैं कहाँ रो पाता हूँ
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चलता रहता हूँ थकावट ही नहीं होती
पर मंजिल तक मैं कहाँ जा पाता हूँ
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महफिलों से आते हैं बुलावे रोज ही मुझको
मैं गम सुनाता हूँ महफ़िल में कहाँ छा पाता हूँ
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हाथ रोज उठता हूँ दुआओ की खातिर मैं
पर ख़ुदा से बात अपनी कहाँ कह पाता हूँ
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लेटा हूँ मैं अर्थी पर लगा दो आग मुझको
पाना है ख़ुदा को देखो कहाँ कब पाता हूँ
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Sunday, 31 January 2016

झूठ बोलते थे तब मशहूर थे हम



पहले दुनियादारी से दूर थे हम
झूठ बोलते थे तब मशहूर थे हम
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सच क्या कहा बदनाम हो गए
अब ज़माने में कसूरवार है हम
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पहले अजनबीयों से भी मिलती थी ख़ुशी
अब आश्ना भी देने लगे है गम
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कैद रहते थे पहले खुद में ही कहीं
झूठ को छोड़ा आज़ाद हो गए हम
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अब अच्छे दोस्त कम सच्चे दुश्मन जियादा हैं
पहले झूठे दोस्त थे ज्यादा सच्चे दोस्त थे कम
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पहले मैं खुद को ढूँढा करता था
अब पता चला “प्रवेश” हम हैं हम
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Friday, 29 January 2016

ये देश और है वो देश और था



गांधी जी ने सपना देखा वो देश और था
ये देश और है वो देश और था
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सरहद पर लड़ता रहा पूत ज़िन्दगी भर
सलामती की ख़बर आई तो संदेश और था
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नेता ने ही लूट लिया सारे शहर को
पकड़ा गया जब उसका भेष और था
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इतिहास पढ़ा कल यकीं करना मुश्किल हो गया
सोने की चिड़िया वाला भारत और था ये देश और था
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"प्रवेश कुमार"