रातें सोती हैं मैं कहाँ सो पाता हूँ
बैचेन रहता हूँ चैन से कहाँ सो पाता हूँ |
सिसकियों की आवाज़ गूंजती है कानो में
टपकती है आँखें पर मैं कहाँ रो पाता हूँ |
चलता रहता हूँ थकावट ही नहीं होती
पर मंजिल तक मैं कहाँ जा पाता हूँ |
महफिलों से आते हैं बुलावे रोज ही मुझको
मैं गम सुनाता हूँ महफ़िल में कहाँ छा पाता हूँ |
हाथ रोज उठता हूँ दुआओ की खातिर मैं
पर ख़ुदा से बात अपनी कहाँ कह पाता हूँ |
लेटा हूँ मैं अर्थी पर लगा दो आग मुझको
पाना है ख़ुदा को देखो कहाँ कब पाता हूँ |
बैचेन रहता हूँ चैन से कहाँ सो पाता हूँ |
सिसकियों की आवाज़ गूंजती है कानो में
टपकती है आँखें पर मैं कहाँ रो पाता हूँ |
चलता रहता हूँ थकावट ही नहीं होती
पर मंजिल तक मैं कहाँ जा पाता हूँ |
महफिलों से आते हैं बुलावे रोज ही मुझको
मैं गम सुनाता हूँ महफ़िल में कहाँ छा पाता हूँ |
हाथ रोज उठता हूँ दुआओ की खातिर मैं
पर ख़ुदा से बात अपनी कहाँ कह पाता हूँ |
लेटा हूँ मैं अर्थी पर लगा दो आग मुझको
पाना है ख़ुदा को देखो कहाँ कब पाता हूँ |
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