Friday, 27 November 2015

ये होता रहेगा जब तक है भ्रष्टाचार भी

कहीं बहार आई मोहब्बत की
कहीं कमी हो गई प्यार की,
किसी को मिली शान सवारी
किसी को मिले नहीं कंधे चार भी,
किसी का राज़ है किसी के ठाठ हैं
कोई खाता सब्जी शाही पनीर की,
कोई बेबस है तो कोई लाचार है
किसी को मिलता नहीं रोटी के साथ आचार भी
कोई गरीब है और कोई बेरोजगार है,
और कितने ही घूमते बेकार भी,
कोई अमीर है तो किसी का व्यापार है,
और कितने ही चलाते कार भी.
कोई भूखा सोता कोई दर्द से रोता
किसी को मिलता नहीं कोई उपचार भी,
कोई ‘बार’ में पीता ‘एम्स’ में ठीक होता
ये होता रहेगा जब तक है भ्रष्टाचार भी


Parvesh Kumar

यूँ तो मंजिल पता है मुझको

हर दिन मैं भूखा होता हूँ,
हर रात मैं भूखा सोता हूँ
यूँ तो हँसता हूँ दिखलाने को,
पर सच अन्दर से हरपल रोता हूँ
सब पाना अच्छा लगता है,
पर कुछ खोने से मैं डरता हूँ,
यूँ तो रहता हूँ हमेशा भीड़ में,
पर सच मैं हरपल अकेला होता हूँ
कौन है अपना कौन पराया
इतना भी समझ नहीं पाता हूँ,
यूँ तो मंजिल पता है मुझको
पर रास्तों पर भटक सा जाता हूँ
ख़ुदा से हरदम पूछता हूँ
पर खुद से पूछ नहीं पाता हूँ,
यूँ तो मेरा कोई कुसूर नहीं
पर जाने मैं क्यों सजा पाता हूँ


Parvesh Kumar

Thursday, 26 November 2015

दोस्तों की सबकी शादी लगी होने

दोस्तों की सबकी शादी लगी होने,
मेरी अब उम्र लगी गुजरने
मेरे माथे पर लकीरों का घेरा,
दोस्तों के सर पर शादी का सेहरा,
सूखे फूल भी महकने लगे वहां
मेरा मुरझाने लग गया चेहरा
वहां पर है संगीत-ए-ख़ुशी
मेरे घर पर है गम-ए-शायरी,
मैं रह गया कुंवारा अकेला
झूठी लगने लग गई दोस्ती यारी
जब वहां बजने लगी शहनाई
मेरे दिल पर बिजली सी गर्जाई,
उनके आँगन में हो गई रौशनी
मेरी ज़िन्दगी में काली अमावास आई
वहां थी रात सुहाग वाली,
मैं करवट बदलता रहा रातभर,
वो मनाने लगे रोज दिवाली
पटाखों से जल गया मेरा शहर
किसी को मिली बाइक हौंडा
कोई चलाने लग गया हौंडा कार,
घरवाले दांत पीसने लगे मुझपर
मैं लगने लग गया उन्हें बेकार
कुछ वक़्त बीता है शायद एक-दो साल
आधे दोस्त शकल से लगते है फटेहाल,
कुछ चल रहे हैं संभल-संभलकर
मगर हम है अब तक खुशहाल
हम भी ये लड्डू खायेंगे मगर
इंतजार है कब सही वक़्त आए,
क्योंकि जो खावे वो भी पछतावे और
जो न खावे वो भी पछतावे


Parvesh Kumar