Friday, 27 November 2015

यूँ तो मंजिल पता है मुझको

हर दिन मैं भूखा होता हूँ,
हर रात मैं भूखा सोता हूँ
यूँ तो हँसता हूँ दिखलाने को,
पर सच अन्दर से हरपल रोता हूँ
सब पाना अच्छा लगता है,
पर कुछ खोने से मैं डरता हूँ,
यूँ तो रहता हूँ हमेशा भीड़ में,
पर सच मैं हरपल अकेला होता हूँ
कौन है अपना कौन पराया
इतना भी समझ नहीं पाता हूँ,
यूँ तो मंजिल पता है मुझको
पर रास्तों पर भटक सा जाता हूँ
ख़ुदा से हरदम पूछता हूँ
पर खुद से पूछ नहीं पाता हूँ,
यूँ तो मेरा कोई कुसूर नहीं
पर जाने मैं क्यों सजा पाता हूँ


Parvesh Kumar

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