Friday, 3 June 2016

अब जाकर मौत का डर ख़त्म हुआ


वक़्त की ना हो कदर जहाँ पे
नफरत बहूत है मुझे उस जगह से
,
अब नहीं रखता नजर मंजिल पर मैं
रख लिया है मंजिल को ही दिल में सजा के
,
अब जाकर मौत का डर ख़त्म हुआ

हादसों में कई बार अपनी जान बचा के,
तसुव्वर उसके प्यार का अब भी है मुझे पर
अब इश्क़ में कदम रखता हूँ संभल-संभल के
,
खुशियों की खातिर हमने प्यार किया
पर गम ही मिला है मुझे इश्क़ करके
,
अब नहीं होता विश्वास परछाइयों पर भी

खायें हैं जब से मैंने सायों से धोखे |


“प्रवेश कुमार”


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