Wednesday, 11 May 2016

देखे हैं मैंने आज कई चेहरे गौर से



उलझी हुई है ज़िन्दगी मुसीबतों की डोर से
ये आ रही है सदा दुआओं की किस ओर से
,
गया था मैं समंदर में मच्छलियों से मिलने
घेरा मुझे मगरमच्छों ने चारों ओर से
,
चुनाव के बाद निगल गए सब जनता को
वोट मांगने आए थे जो सब के सब चोर थे
,
भ्रष्टाचारी की गाथा लिए फिरते हैं बहूत लोग
देखे हैं मैंने आज कई चेहरे गौर से
,
वीरानों में आया तो मारा है तन्हाई ने
मुश्किल से बचकर आए थे भीड़ के शौर से
,
अब कोई नया नामकरण करना होगा भारत का
गूंजती है हर दिशा यहाँ गुनाहों के शौर से
|


“प्रवेश कुमार”

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