Wednesday, 25 November 2015

इस कदर उसे खुदपर गुरुर हो गया

दिल मेरा टूटा और चकनाचूर हो गया,
इस कदर उसे खुदपर गुरुर हो गया
कहीं शमा जली कहीं जल गया परवाना,
हर कोई यहाँ पर मगरूर हो गया
जब देखा ख़ुदा ने नहीं इंसानियत यहाँ पर,
वो अपनी बनाई दुनिया से ही दूर हो गया
Parvesh Kumar

मेरा भी कसुर है मैंने प्यार किया उससे

गरीबी से बढ़कर कोई मज़बूरी नहीं है,
अब मेरी मौजूदगी यहाँ ज़रूरी नहीं है
हलाल हुआ हूँ बेवफाई के खंज़र से ,
अब मौत से मेरी ज्यादा दूरी नहीं है
नासूर बन गए हैं जख्म मेरे अब,
मुझे मारने की कोशिश उसकी अधुरी नहीं है
मेरा भी कसुर है मैंने प्यार किया उससे,
मत देना सज़ा उसको वो कातिल पूरी नहीं है
मैंने सोचा था संवर जाएगी ज़िन्दगी प्यार से मेरी,
पर जीने के लिए प्यार करना ज़रूरी नहीं है
Parvesh Kumar

Monday, 23 November 2015

गाँव हो शहर हो कैसे जी रहे हैं लोग

गाँव हो शहर हो कैसे जी रहे हैं लोग,
हवा के नाम पर जहरीली हवा पी रहे हैं लोग
शुद्धता सिर्फ मार्कों में बंध के रह गयी,
अब पानी वाला दूध सब पी रहे हैं लोग
कल बस्ती में आया था एक जादूगर,
आज भगवान को उसी मे खोज रहे हैं लोग
मीरा, कबीरा क्या इसी धरती पे रहते थे,
फिर अब इस दुनिया के कैसे हो गए हैं लोग
अब जा रहा है ‘प्रवेश’ भी अपने घर को ,
यहाँ तो सदियों से सब सो रहे हैं लोग
Parvesh Kumar