Wednesday, 25 November 2015

मेरा भी कसुर है मैंने प्यार किया उससे

गरीबी से बढ़कर कोई मज़बूरी नहीं है,
अब मेरी मौजूदगी यहाँ ज़रूरी नहीं है
हलाल हुआ हूँ बेवफाई के खंज़र से ,
अब मौत से मेरी ज्यादा दूरी नहीं है
नासूर बन गए हैं जख्म मेरे अब,
मुझे मारने की कोशिश उसकी अधुरी नहीं है
मेरा भी कसुर है मैंने प्यार किया उससे,
मत देना सज़ा उसको वो कातिल पूरी नहीं है
मैंने सोचा था संवर जाएगी ज़िन्दगी प्यार से मेरी,
पर जीने के लिए प्यार करना ज़रूरी नहीं है
Parvesh Kumar

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