Friday, 27 November 2015

ये तेरा और मेरा रिश्ता

तेरा सफ़र मेरा सफ़र
तू कितना खुबसूरत है हमसफ़र,
मुझपर डाल तू इक नजर
तेरा भी दिल चाहे अगर
मैं करना चाहुँ तुझसे प्यार
गर मुझपे हो ऐतबार,
मैं करना चाहूँ इश्क़-ए-करार
दिल मेरा है बेक़रार
प्यार है तो सब है सही
प्यार नहीं तो तू नहीं, मैं नहीं,
और ये सारा जहाँ नहीं
महापुरुषों ने ये बात कही |
इंतजार करूँ मैं कितना तेरा
मेरा सबकुछ है अब तेरा,
मुझे नहीं अब शुकून कहीं
तेरे दिल में चाहूँ मैं बसेरा
अब तक चुप क्यूँ है तू
अब तेरा मेरा ना कर तू,
अब तेरा मेरा है हमारा
मेरे जैसा ना पायेगी तू
ख़ुदा ने मुझको भेजा है
ऐसे ही कोई किसी से नहीं मिलता,
फूल और खुशबू जैसा है
ये तेरा और मेरा रिश्ता


Parvesh Kumar

ये होता रहेगा जब तक है भ्रष्टाचार भी

कहीं बहार आई मोहब्बत की
कहीं कमी हो गई प्यार की,
किसी को मिली शान सवारी
किसी को मिले नहीं कंधे चार भी,
किसी का राज़ है किसी के ठाठ हैं
कोई खाता सब्जी शाही पनीर की,
कोई बेबस है तो कोई लाचार है
किसी को मिलता नहीं रोटी के साथ आचार भी
कोई गरीब है और कोई बेरोजगार है,
और कितने ही घूमते बेकार भी,
कोई अमीर है तो किसी का व्यापार है,
और कितने ही चलाते कार भी.
कोई भूखा सोता कोई दर्द से रोता
किसी को मिलता नहीं कोई उपचार भी,
कोई ‘बार’ में पीता ‘एम्स’ में ठीक होता
ये होता रहेगा जब तक है भ्रष्टाचार भी


Parvesh Kumar

यूँ तो मंजिल पता है मुझको

हर दिन मैं भूखा होता हूँ,
हर रात मैं भूखा सोता हूँ
यूँ तो हँसता हूँ दिखलाने को,
पर सच अन्दर से हरपल रोता हूँ
सब पाना अच्छा लगता है,
पर कुछ खोने से मैं डरता हूँ,
यूँ तो रहता हूँ हमेशा भीड़ में,
पर सच मैं हरपल अकेला होता हूँ
कौन है अपना कौन पराया
इतना भी समझ नहीं पाता हूँ,
यूँ तो मंजिल पता है मुझको
पर रास्तों पर भटक सा जाता हूँ
ख़ुदा से हरदम पूछता हूँ
पर खुद से पूछ नहीं पाता हूँ,
यूँ तो मेरा कोई कुसूर नहीं
पर जाने मैं क्यों सजा पाता हूँ


Parvesh Kumar