Thursday, 3 December 2015

भूलना चाहता हूँ मैं उसकी यादें

हँसने दे मुझे हँसने दे,
रोने को रात काफी है.
तड़प रहा हूँ प्यार में जिसके ,
उसको एहसास दिलाना बाकी है,
धोखा दिया है हर शख्स ने,
मयखाना है साथ या फिर साकी है
भूलना चाहता हूँ मैं उसकी यादें,
जो मेरी तन्हाई की साथी है
सब दवा और दुआ बेकार है मुझपर,
जीने के लिए उसका एहसास काफी है,
अब देखना है उसको आबाद होते हुए ,
जो कहती है मरना मेरा बाकी है

Wednesday, 2 December 2015

हर रात के बाद सवेरा होता है

कितनी रातें बीत गई मैं सोया नहीं,
आँखें सूख गई पर मैं रोया नहीं,
इतना करके भी मैं कुछ पाया नहीं,
मेरा दरवाज़ा खटखटाने कोई आया नहीं,
इन्तजार करना कितना बुरा होता है,
पर हर रात के बाद सवेरा होता है
|
दिन में भी मैंने ख्वाबों को सजाया,
आँख खुली तो कुछ भी ना पाया,
जो कहता था मैं हूँ तेरा हमसाया,
उसका भी मैंने कोई निशाँ नहीं पाया,
ज़िन्दगी का पन्ना मेरा कोरा रहता है,
पर हर रात के बाद सवेरा होता है
जब मेरे यहाँ कभी रात आती है,
साथ अपने ग़मों की बरसात लाती है,
जुगनू की रौशनी भी हमें सताती है,
पर हमेशा लबों पर एक बात आती है,
यहाँ रात में भी कहाँ अँधेरा होता है,
पर हर रात के बाद सवेरा होता है |


Parvesh Kumar

कभ-कभी हैरान करे ज़िन्दगी

कभी-कभी आसान लगे ज़िन्दगी,
कभ-कभी हैरान करे ज़िन्दगी
,
पर अब तो रोज परेशान करे ज़िन्दगी

दूर उस खाली मैदान में कभी,
हँसते थे घंटो खेलते थे
,
पर आज वहां पैर रखने को जगह नहीं
पहले सुबह ताज़ी हवा खाते थे
पर अब हवा जहाँ से गुजरती है
वहां हर जगह ढेर हो गए गन्दगी
|
जमीं हो रही है रोज छोटी
जनसँख्या इस कदर बढ़ रही
कि इंसान को इंसान की कदर नहीं

मानवता ने प्राण त्याग दिये
इंसानियत कब्र पर लेट गई
अब सब खत्म हो गई बंदगी
मेरी हस्ती ऐसे खत्म हुई
मेरी परछाई मुझसे कहने लगी
अजनबी हो तुम भी अजनबी है हम भी
नफरत पलने लग गई दिल में
रिश्ते नाते सब भूल गया
अकेला रहना चाहा मैंने हर कहीं
अकेला रहकर हो गया परेशान
चैन नहीं है अब सुबह शाम
जीने का बचा अब कोई अर्थ नहीं
मौत को पाने की चाहत में
सवाल पूछा ख़ुदा से हर घड़ी
ऐ ख़ुदा क्यूँ दी है मुझे ज़िन्दगी


Parvesh Kumar