Wednesday, 2 December 2015

हर रात के बाद सवेरा होता है

कितनी रातें बीत गई मैं सोया नहीं,
आँखें सूख गई पर मैं रोया नहीं,
इतना करके भी मैं कुछ पाया नहीं,
मेरा दरवाज़ा खटखटाने कोई आया नहीं,
इन्तजार करना कितना बुरा होता है,
पर हर रात के बाद सवेरा होता है
|
दिन में भी मैंने ख्वाबों को सजाया,
आँख खुली तो कुछ भी ना पाया,
जो कहता था मैं हूँ तेरा हमसाया,
उसका भी मैंने कोई निशाँ नहीं पाया,
ज़िन्दगी का पन्ना मेरा कोरा रहता है,
पर हर रात के बाद सवेरा होता है
जब मेरे यहाँ कभी रात आती है,
साथ अपने ग़मों की बरसात लाती है,
जुगनू की रौशनी भी हमें सताती है,
पर हमेशा लबों पर एक बात आती है,
यहाँ रात में भी कहाँ अँधेरा होता है,
पर हर रात के बाद सवेरा होता है |


Parvesh Kumar

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