कभी-कभी आसान लगे ज़िन्दगी,
कभ-कभी हैरान करे ज़िन्दगी,
पर अब तो रोज परेशान करे ज़िन्दगी
दूर उस खाली मैदान में कभी,
हँसते थे घंटो खेलते थे,
पर आज वहां पैर रखने को जगह नहीं
पहले सुबह ताज़ी हवा खाते थे
पर अब हवा जहाँ से गुजरती है
वहां हर जगह ढेर हो गए गन्दगी |
जमीं हो रही है रोज छोटी
जनसँख्या इस कदर बढ़ रही
कि इंसान को इंसान की कदर नहीं
मानवता ने प्राण त्याग दिये
इंसानियत कब्र पर लेट गई
अब सब खत्म हो गई बंदगी
मेरी हस्ती ऐसे खत्म हुई
मेरी परछाई मुझसे कहने लगी
अजनबी हो तुम भी अजनबी है हम भी
नफरत पलने लग गई दिल में
रिश्ते नाते सब भूल गया
अकेला रहना चाहा मैंने हर कहीं
अकेला रहकर हो गया परेशान
चैन नहीं है अब सुबह शाम
जीने का बचा अब कोई अर्थ नहीं
मौत को पाने की चाहत में
सवाल पूछा ख़ुदा से हर घड़ी
ऐ ख़ुदा क्यूँ दी है मुझे ज़िन्दगी
Parvesh Kumar
कभ-कभी हैरान करे ज़िन्दगी,
पर अब तो रोज परेशान करे ज़िन्दगी
दूर उस खाली मैदान में कभी,
हँसते थे घंटो खेलते थे,
पर आज वहां पैर रखने को जगह नहीं
पहले सुबह ताज़ी हवा खाते थे
पर अब हवा जहाँ से गुजरती है
वहां हर जगह ढेर हो गए गन्दगी |
जमीं हो रही है रोज छोटी
जनसँख्या इस कदर बढ़ रही
कि इंसान को इंसान की कदर नहीं
मानवता ने प्राण त्याग दिये
इंसानियत कब्र पर लेट गई
अब सब खत्म हो गई बंदगी
मेरी हस्ती ऐसे खत्म हुई
मेरी परछाई मुझसे कहने लगी
अजनबी हो तुम भी अजनबी है हम भी
नफरत पलने लग गई दिल में
रिश्ते नाते सब भूल गया
अकेला रहना चाहा मैंने हर कहीं
अकेला रहकर हो गया परेशान
चैन नहीं है अब सुबह शाम
जीने का बचा अब कोई अर्थ नहीं
मौत को पाने की चाहत में
सवाल पूछा ख़ुदा से हर घड़ी
ऐ ख़ुदा क्यूँ दी है मुझे ज़िन्दगी
Parvesh Kumar
No comments:
Post a Comment