Friday, 4 December 2015

दुआ है सब ठीक हो जाए

सोचा था ज़िन्दगी जियेंगे पर
ज़िन्दगी काटनी पड़ रही है,
मेरी ही ज़िन्दगी मेरे
अरमानों संग लड़ रही है
जवानी का हर खेलूँ
कितने अरमान थे दिल में मेरे,
तन्हाई और मज़बूरी ने अब
ले लिए हैं सात फेरे,
तन्हाई और मज़बूरी अब तो
हर वक़्त साथ में रहती हैं,
कभी मज़बूरी हमें भगाती है तो
कभी तन्हाई गले लगाती है
पैसों की अंधी दौड़ में
यारों दोस्तों के साथ छुट गए,
अरमान दिल में मरने लग गए
हम अन्दर ही अन्दर घुट गए |
जान पहचान सब खत्म हुई
रिश्ते नाते बदबूदार हो गए,
गलती करके भी है गर्दन ऊँची
देखो हम कितने खुद्दार हो गए
नई पीढ़ी को होश नहीं
हर वक़्त नशे में रहती है,
उनके लिए तो गंगा जमुना
दारु की बोतल में बहती है
शर्म हया सब खत्म हो गई
कलयुग के इस काल में,
दुआ है सब ठीक हो जाए
आने वाले नए साल में |


फेर म्हारे बीच में होया प्यार

म्हारे बीच में होया प्यार
जब मैं बनग्या उसका यार
घनी पुराणी बात है,
काली घनी रात थी,
सफ़र मेरा था कती अकेला,
फेर राह में एक नार मिली,
हाथ देके लिफ्ट मांगी,
जीन्स टॉप में थी तयार खड़ी
जब गाडी टॉप गेर में लाई,
वा हांस के बोली बतलाई,
बात बातां में माँगा नंबर,
तारिख थी उस दिन तीन सितम्बर
जब फ़ोन पे भीडे म्हारे तार,
फेर म्हारे बीच में होया प्यार
मैं बनग्या फेर उसका यार..................
रात दस बजे मन्ने फोन मिलाया ,
दो घंटी बाजे पाछे फोन ठाया,
उस दिन बूंदा बांदी होवे थी,
वा पड़ी चादर में सोवे थी,
वा मेरे खयाला में खोरी थी,
न्यू मन्ने बैचेनी होरी थी
घर पे उसके था कोई भी कोन्या,
खड़ा होया मेरा ज़ालिम खिलौना,
वा घरा बुलाण ने होगी तयार
फेर म्हारे बीच में होया प्यार
मैं बनग्या फेर उसका यार....................
ग्यारा बजे मैं उसके घरा गया,
फेर म्हारी खो गई शर्म हया,
कोली भरके बेड पे पड़ग्या
जुकर मिठाई पे मकोड़ा गड्ग्या

होठा-होठा सफ़र शुरू करा
फेर सेज सेज नीचे उतरा
एक राजा था दो सिपाई,
दो पहाड़ा बीच करी घुलाई
हम दोनूं होए कती लाचार,
फेर म्हारे बीच में होया प्यार,
मैं बनग्या फेर उसका यार....................
मन्ने तोड़ी फेर गुलाब कली
जुकर संतरे की फाड़ खुली,
आगे आई एक छोटी गुफा
राजा छोड़ सिपाई, उड़े घुसा
राजा जब भीतर चला गया,
सिपाई बोले राजा कड़े गया
राजा ने मिलगी रानी थी
या ख़त्म हुई कहानी थी,
‘प्रवेश शर्मा’ ने करया था यो करार,
फेर म्हारे बीच में होया प्यार
मैं बनग्या फेर उसका यार...................


Thursday, 3 December 2015

मेरे सनम काश तू मुझको समझ लेता

प्यार के दर्द से चल रही है ज़िन्दगी,
बूंद बूंद बर्फ जैसे पिघल रही है ज़िन्दगी
एक वादा था जो अंजाम तक ना पहुँच सका,
मौत के सांचे में अब ढल रही है ज़िन्दगी
मेरे सनम काश तू मुझको समझ लेता ,
अब रेत की तरह हाथ से फिसल रही है ज़िन्दगी
किस हक से अब तुझको पुकारूं ये बता,
शर्म के बोझ तले अब दब रही है ज़िन्दगी
कुछ गलतियाँ तेरी हैं कुछ खता मेरी भी है,
टुकड़ो-टुकड़ो में अब मेरी बंट रही है ज़िन्दगी
जहा भी रहना तू रहना सलामत,
तेरी बढ़ रही है मेरी घट रही है ज़िन्दगी
तू अपनी ज़िन्दगी संवार मेरे कुसूर न गिन,
जैसे तैसे चल रही है, मेरी चल रही है ज़िन्दगी
क्यूँ फर्क पड़ता है तुझे मेरे बर्बाद होने से,
जो तेरी थी अब वो मेरी हो रही है ज़िन्दगी
है तुझसे इश्क़ मुझे अब भी मेरे सनम,
पर तेरे लिए अब बोझ, मेरी हो रही है ज़िन्दगी
तुम ना रोना एक दिन मर जायेगा ‘प्रवेश’,
मौत है सस्ती, यहाँ महंगी बहूत हो रही है ज़िन्दगी