Sunday, 13 December 2015

गंवार था जो शिक्षक भर्ती हो गया

शिक्षा का भी स्तर गिर गया,
शिक्षकों का भी मान घट गया
बेकसुर हैं
, युवाओं को दोष ना दो,
स्कूलों में भी भ्रष्टाचार बढ़ गया
नैतिक मूल्य भी भूल गए सब,
संस्कारों का पाठ कहीं खो गया
हर्फ़ों से अपरिचितों को खुश देखा तो,
मैं अपनी डिग्रियां देखकर रो गया
रिश्वतखोरी ने डामाडोल किया सब,
गंवार था जो शिक्षक भर्ती हो गया
भविष्य देश का खतरे में है,
मार्गदर्शक था जो अब खुदगर्जी हो गया
बेफिक्र रहने की कोशिश करेगा ‘प्रवेश’,
हालात ठीक करना अब सरदर्दी हो गया

खिलने को तो कब्र पर भी फूल खिलते हैं

हमारी आस्तीन में अब सांप पलते हैं,
लोग दिखावे का हमसे अब रिश्ता रखते हैं
आ जाओ सामने एक बार जी भरके देखलूं,
आखिरी बस अब यही ख्वाहिश रखते हैं
तुमने पाल ली है हमसे दुश्मनी दिल में,
हम तो तेरी ही चाहत की आरजू रखते हैं
जब जी चाहे आ जाना मेरी अयादत को,
तेरी खातिर हम बचाकर आखिरी सांस रखते हैं
बाकी उम्र हम गुजारेंगे अपनी मयखाने में,
वही एक छोटा सा आशियाना बनाकर रखते हैं
जानते हैं के इंतजार की हदें भी टूट जाएँगी,
तेरे दीदार की तमन्ना फिर भी दिल में रखते हैं
आ जाना जब ख़ाक में मिल जाएगा “प्रवेश”,
खिलने को तो कब्र पर भी फूल खिलते हैं


Friday, 11 December 2015

शुरू हुआ नेता का भाषण

शुरू हुआ नेता का भाषण
भीड़ में था बच्चों-बूढों का मिश्रण,
नेता मंच पर खड़े हुए
दोनों हाथ में माइक लिए
नेता ने शुरू किया कहना
बोले भाइयों भाइयों भाइयों......
दुसरे नेता ने टांग अड़ाई
बोले अब आगे कह दो बहना
पहला नेता बोला
मैं युवा और कुंवारा हूँ
बहन कहने से सबका दिल टूटेगा
फिर मैं वोट कैसे लूटूँगा
दूसरा नेता बीच में बोला
ये है कलयुग का मेला
यही रस्म हर नेता को निभाना है,
बहन बोलकर ही वोट मिलती है
क्योंकि बड़ा बेहनचोद ज़माना है