Wednesday, 23 December 2015

मेरे सारे ही किस्से तमाम हो गए

इश्क़ के बाज़ार में हम नीलाम हो गए,
वफ़ा करके भी हम यहाँ बदनाम हो गए
बेवफ़ा को मिल गया आशिक़ नया,
मेरे सारे ही किस्से तमाम हो गए
उसने रचाली है मेहंदी गैर के नाम की,
इधर मेरे सरपे बेवफाई के इल्जाम हो गए
बेहोश रहना और होश में ना आना,
मैकदे में जाना ही बस मेरे काम हो गए
किसी से बात नहीं करता चुप रहता है ’प्रवेश’,
जिंदा होकर भी हम मुर्दा इंसान हो गए

Tuesday, 22 December 2015

एक ओर है मदिरालय एक ओर पुस्तकालय

किताब और दारु में हो गई लड़ाई
दोनों कहती हैं, नौजवान सब है मेरे भाई,
किताब ने दारु को ललकारा
बीच बाज़ार लोगों को पुकारा,
चारों और लोग हो गए इकठ्ठा
किताब और दारु पर लगने लग गया सट्टा
किताब बोली...................
मैं लोगों को ज्ञान हूँ देती,
संसार में लोगों को सम्मान दिलाती,
मेरी शरण में जो भी आता,
ज़िन्दगी भर मैं उसका साथ निभाती
दारु बोली.....................
तुझसे तंग आकर सब मेरे पास ही आते हैं
मुझे गले लगाकर अपने सारे गम भूलाते हैं
बेशक मेरा साथ हो कुछ पल का लेकिन
मेरा साथ पाकर सब झूमते और गाते हैं
किताब बोली...................
तेरा साथ पाकर सब शर्म-हया खो देते हैं
तेरा साथ छुटता है तो खुद पर ही रो देते हैं
तेरे साथ सब मेरे शब्द ही गाते हैं, ये सोच
कि तेरे साथ होकर भी कहाँ मुझे छोड़ पाते हैं
सदियों से मैं सबका साथ निभाती आई हूँ,
जो भी भटका है उसको राह दिखाती आई हूँ
तूने तो लोगों को उजाड़ा और रुलाया है
मैंने तो रोते हुए को हँसना सिखाया है

दारु और किताब में जंग अभी भी जारी है
किसको है जिताना ये जिम्मेदारी हमारी है
जो चुनेगा सही रास्ता मंजिल को पा जायेगा
वरना तो संसार में ही चक्कर खायेगा
दारु पीने वाला तो खोता है और रोता है
वक़्त से पहले ज़िन्दगी से हाथ धोता है
किताबों में छुपे ज्ञान को जिसने ना पाया,
वो सच्चे अर्थों में कहाँ इंसान होता है,
कोई बढ़ा न पाया एक कदम भी
कोई पहुँच गया हिमालय,
आपको जाना है कहाँ आपको तय करना है,
एक ओर है मदिरालय एक ओर पुस्तकालय



Monday, 21 December 2015

बैचेन हूँ तेरे प्यार में मैं जिस तरह

बैचेन हूँ तेरे प्यार में मैं जिस तरह,
तडपे तू भी मेरे प्यार में उस तरह
दिन तो गुजर गया तेरी यादों में,
गमें-शब गुजारूँगा अब किस तरह
शराब न पीने के वादे पे कायम हूँ अब भी,
हिज्र के गम अब मिटाऊंगा किस तरह
छोड़कर गयी मुझे मझधार में अकेला,
तन्हा ये ज़िन्दगी अब बिताऊंगा किस तरह
साथ जीने मरने का वादा कर गया ‘प्रवेश’,
बिन उसके मौत गले लगाऊंगा किस तरह