Tuesday, 16 February 2016

बस यही फरमान कर रहा हूँ



मैं खुदपर आज एक एहसान कर रहा हूँ
खुद को अपने दुश्मन के घर मेहमान कर रहा हूँ
,
मुझे धर्म-जाति से फर्क नहीं पड़ता
हिन्दू हूँ फिर भी कुरआन पढ़ रहा हूँ
,
मेरी लाश पर आकर आंसू मत बहाना
मैं खुद ही अपना कत्ले-आम कर रहा हूँ
,
न जलाना मुझको न ही दफनाना मुझको
मरने से पहले बस यही फरमान कर रहा हूँ
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Monday, 15 February 2016

अब प्यार तिजारत हो गया



जिसका नाम हो गया वो सरे आम हो गया
किस्सा मेरी मोहब्बत का अब यहाँ आम हो गया,
देखता है हर कोई मुझे अब शक की निगाहों से
किसीको मुझसे बैर हो गया किसीको प्यार हो गया
,
खोया हूँ मैं अब तलक ख्यालों में उसके
ज़माने की नजरों में अब जो बेकार हो गया
,
उसने किया प्यार इतनी सी खता है उसकी
जहाँ गुजारा मुश्किल था वहां जीना दुश्वार हो गया
,
प्यार की कहानियां अमर है जहाँ पर
अब प्यार तिजारत हो गया ये कैसा संसार हो गया
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Sunday, 14 February 2016

और शायद यही तो जिन्दगी है


काम की तलाश में अनपेक्षित भटकते हुए
मैं सोचता हूँ कि जब पढ़ता था तब अच्छा था,
लेकिन तब दिलों में इच्छा थी
बड़ा होने की काम करने की।
हर वक़्त हर पल इंसान गुम है
भविष्य की सोच में भूतकाल की ओट में।
और शायद यही तो जिन्दगी है,
मगर यही है जिन्दगी तो वर्तमान क्या है
वर्तमान में जीना क्या है
लेकिन कहाँ है समय वर्तमान के लिए
सब तो भविष्य और भूतकाल कब्जा चुका है
और अब वर्तमान में आदमी, आदमी नहीं है
एक पुतला है सिर्फ पुतला सांस लेता हुआ
अंदर कहीं गुम वही सोच कल और कल आज कहीं गुम । "
"प्रवेश कुमार"