Wednesday, 24 February 2016

प्रेम सबसे बड़ा रहस्य है

प्रेम एक रहस्य है। रहस्यों का रहस्य!
प्रेम से ही बना है अस्तित्व और प्रेम से ही समझ में आता है। प्रेम से ही हम उतरे हैं जगत् में और प्रेम की सीढ़ी से ही हम जगत् के पार जा सकते हैं। प्रेम को जिसने समझा उसने परमात्मा को समझा। और जो प्रेम से वंचित रहा वह परमात्मा की लाख बात करे, बात ही रहेगी, परमात्मा उसके अनुभव में न आ सकेगा। प्रेम परमात्मा को अनुभव करने का द्वार है। प्रेम आँख है।
अगर प्रेम भीतर हो तो आत्मा प्रकाशित हो उठती है।
रूह ऐसी रोशनी से भर जाती है, अगर प्रेम हो, कि आंखें उस रोशनी को देखें तो तिलमिला जाएं, देख न पाएं, देखना चाहें तो देख न पाएं। सूरज का प्रकाश उसके सामने फीका है। चांदतारे टिमटिमाते दीए हैं -- उसके सामने, उसके मुकाबले, उसकी तुलना में।
जिसने प्रेम जाना उसने पहली दफा रोशनी जानी। और जिसने प्रेम नहीं जाना उसने जीवन में सिर्फ अंधकार जाना, अंधेरी रात जानी, अमावस जानी, उसकी पूर्णिमा से पहचान नहीं हुई।
संस्कृतियां, सभ्‍यताएं प्रेम के समक्ष कुछ भी नहीं। प्रेम सबसे बुलंद है -- धर्म, मजहब, संस्कार, रीति - रिवाज, परंपराएं, रूढ़ियां। इन सबसे बहुत पार है। किन्हीं रीति - रिवाजों में नहीं समाता। किन्हीं सभ्‍यताओं में सीमित नहीं होता। किन्हीं संस्कृतियों में आबद्ध नहीं है।
प्रेम मुक्ति है -- मुक्त आकाश है।
उस प्रेम को खोजो, जो हिंदू के पार है, मुसलमान के पार है, कुरान के ऊपर जाता है, गीताएं जहां से नीचे अंधेरी खाइयां हो जाती हैं। उन शिखरों को तलाशो। उन्हीं शिखरों पर परमात्मा का निवास है।
 ओशो

ईश्वर की छाती के घाव हैं मनुष्य

         एक झूठी कहानी है। मैंने सुना है कि ईश्वर दूसरे महायुद्ध के बाद बहुत परेशान हो गया। ईश्वर तो तभी से परेशान है, जब से उसने आदमी को बनाया। जब तक आदमी नहीं था, बड़ी शांति थी दुनिया में। जब से आदमी को बनाया, तब से ईश्वर बहुत परेशान है।
सुना तो मैंने यह है कि तबसे वह ठीक से सो नहीं सका बिना नींद की दवा लिए। सो भी नहीं सकता। आदमी सोने दे तब न! आदमी खुद न सोता है, न किसी और को सोने देता दे। और इतने आदमी है कि ईश्वर को सोने कैसे देंगे! इसलिए आदमी को बनाने के बाद ईश्वर ने फिर और कुछ नहीं बनाया। बनाने का काम ही बंद कर दिया। इतना घबड़ा गया होगा कि बस अब क्षमा चाहते हैं, अब आगे बनाना भी ठीक नहीं। दूसरे महायुद्ध के बाद वह घबड़ा गया होगा।
ऐसे तो इतने युद्ध हुए कि ईश्वर की छाती पर कितने घाव पड़े होंगे कि कहना मुश्किल है। सबसे मजा तो यह है कि हर घाव पहुंचाने वाला ईश्वर की प्रार्थना करके ही घाव पहुंचाता है। और मजा तो यह है कि हर युद्ध करने वाला ईश्वर से प्रार्थना करता है कि हमें विजेता बनाना। चर्चों में घंटियां बजाई जाती हैं, मंदिरों में प्रार्थनायें की जाती हैं,युद्धों में जीतने के लिए! पोप आशीर्वाद देते हैं, युद्धों में जीतने, के लिए! ईश्वर की छाती पर जो घाव लगते होंगे, उन घावों का हिसाब लगाना मुश्किल है।
तीन हजार साल के इतिहास में पंद्रह हजार युद्ध और आगे का पीछे का इतिहास तो पता नहीं है। हम यह मान नहीं सकते कि उसके पहले आदमी नहीं लड़ता रहा होगा। लड़ता ही रहा होगा। जब तीन हजार वर्षों में पंद्रह हजार युद्ध करता है आदमी, प्रति वर्ष पांच युद्ध करता है तो ऐसा मानना बहुत मुश्किल है कि वह शांत रहा होगा। इतना ही है कि उसके पहले का इतिहास हमें शात नहीं। दूसरे महायुद्ध के बाद ईश्वर घबड़ा गया। क्योंकि पहले महायुद्ध में साढ़े तीन करोड़ लोगों की हत्या हुई! दूसरे महायुद्ध में हत्या की संख्या साढ़े सात करोड़ पहुंच गई। क्या हो गया आदमी को?
 ओशो

Tuesday, 23 February 2016

सो पत्थर जैसा पड़ा रहा



कितना रोका खुद को मुठ्ठी बाँधें खड़ा रहा
दिल बहुत चाहा पर मौन साधे खड़ा रहा।
मुफ़लिसी दूकान से मजबूर होकर चली गई
वो बच्चा रोता रहा खिलौने को तरसता रहा।
नदी बहती हुई आई और बहती हुई चली गई,
उसने कुछ सोचा ना था सो पत्थर जैसा पड़ा रहा।