कितना रोका खुद को मुठ्ठी बाँधें खड़ा रहा
दिल बहुत चाहा पर मौन साधे खड़ा रहा।
मुफ़लिसी दूकान से मजबूर होकर चली गई
वो बच्चा रोता रहा खिलौने को तरसता रहा।
नदी बहती हुई आई और बहती हुई चली गई,
उसने कुछ सोचा ना था सो पत्थर जैसा पड़ा रहा।
दिल बहुत चाहा पर मौन साधे खड़ा रहा।
मुफ़लिसी दूकान से मजबूर होकर चली गई
वो बच्चा रोता रहा खिलौने को तरसता रहा।
नदी बहती हुई आई और बहती हुई चली गई,
उसने कुछ सोचा ना था सो पत्थर जैसा पड़ा रहा।
No comments:
Post a Comment