प्रेम एक रहस्य है। रहस्यों का रहस्य!
प्रेम से ही बना है अस्तित्व और प्रेम से ही समझ में आता है। प्रेम से ही हम उतरे हैं जगत् में और प्रेम की सीढ़ी से ही हम जगत् के पार जा सकते हैं। प्रेम को जिसने समझा उसने परमात्मा को समझा। और जो प्रेम से वंचित रहा वह परमात्मा की लाख बात करे, बात ही रहेगी, परमात्मा उसके अनुभव में न आ सकेगा। प्रेम परमात्मा को अनुभव करने का द्वार है। प्रेम आँख है।
अगर प्रेम भीतर हो तो आत्मा प्रकाशित हो उठती है।
रूह ऐसी रोशनी से भर जाती है, अगर प्रेम हो, कि आंखें उस रोशनी को देखें तो तिलमिला जाएं, देख न पाएं, देखना चाहें तो देख न पाएं। सूरज का प्रकाश उसके सामने फीका है। चांदतारे टिमटिमाते दीए हैं -- उसके सामने, उसके मुकाबले, उसकी तुलना में।
जिसने प्रेम जाना उसने पहली दफा रोशनी जानी। और जिसने प्रेम नहीं जाना उसने जीवन में सिर्फ अंधकार जाना, अंधेरी रात जानी, अमावस जानी, उसकी पूर्णिमा से पहचान नहीं हुई।
संस्कृतियां, सभ्यताएं प्रेम के समक्ष कुछ भी नहीं। प्रेम सबसे बुलंद है -- धर्म, मजहब, संस्कार, रीति - रिवाज, परंपराएं, रूढ़ियां। इन सबसे बहुत पार है। किन्हीं रीति - रिवाजों में नहीं समाता। किन्हीं सभ्यताओं में सीमित नहीं होता। किन्हीं संस्कृतियों में आबद्ध नहीं है।
प्रेम मुक्ति है -- मुक्त आकाश है।
उस प्रेम को खोजो, जो हिंदू के पार है, मुसलमान के पार है, कुरान के ऊपर जाता है, गीताएं जहां से नीचे अंधेरी खाइयां हो जाती हैं। उन शिखरों को तलाशो। उन्हीं शिखरों पर परमात्मा का निवास है।
ओशो
प्रेम से ही बना है अस्तित्व और प्रेम से ही समझ में आता है। प्रेम से ही हम उतरे हैं जगत् में और प्रेम की सीढ़ी से ही हम जगत् के पार जा सकते हैं। प्रेम को जिसने समझा उसने परमात्मा को समझा। और जो प्रेम से वंचित रहा वह परमात्मा की लाख बात करे, बात ही रहेगी, परमात्मा उसके अनुभव में न आ सकेगा। प्रेम परमात्मा को अनुभव करने का द्वार है। प्रेम आँख है।
अगर प्रेम भीतर हो तो आत्मा प्रकाशित हो उठती है।
रूह ऐसी रोशनी से भर जाती है, अगर प्रेम हो, कि आंखें उस रोशनी को देखें तो तिलमिला जाएं, देख न पाएं, देखना चाहें तो देख न पाएं। सूरज का प्रकाश उसके सामने फीका है। चांदतारे टिमटिमाते दीए हैं -- उसके सामने, उसके मुकाबले, उसकी तुलना में।
जिसने प्रेम जाना उसने पहली दफा रोशनी जानी। और जिसने प्रेम नहीं जाना उसने जीवन में सिर्फ अंधकार जाना, अंधेरी रात जानी, अमावस जानी, उसकी पूर्णिमा से पहचान नहीं हुई।
संस्कृतियां, सभ्यताएं प्रेम के समक्ष कुछ भी नहीं। प्रेम सबसे बुलंद है -- धर्म, मजहब, संस्कार, रीति - रिवाज, परंपराएं, रूढ़ियां। इन सबसे बहुत पार है। किन्हीं रीति - रिवाजों में नहीं समाता। किन्हीं सभ्यताओं में सीमित नहीं होता। किन्हीं संस्कृतियों में आबद्ध नहीं है।
प्रेम मुक्ति है -- मुक्त आकाश है।
उस प्रेम को खोजो, जो हिंदू के पार है, मुसलमान के पार है, कुरान के ऊपर जाता है, गीताएं जहां से नीचे अंधेरी खाइयां हो जाती हैं। उन शिखरों को तलाशो। उन्हीं शिखरों पर परमात्मा का निवास है।
ओशो
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