Sunday, 6 March 2016

खुश है वो शख्स आज मगर


एक उम्र गुज़ार दी हमने तनहाईयों में
बची खुची अब गुजर रही हैं रुसवाईयों में।
गम की सिसकियाँ सुनता भी कोई तो कैसे
दर्द की आवाज़ दब गई शहनाईयों में |
सारे शहर की रौनक जिसे बहला न सकी
खुश है वो शख्स आज मगर वीरानीयों में।
रहने दो मुझे अँधेरों में, मैं यही अच्छा हूँ
डर लगता है अब मुझे शहर की रंगीनियों में।

Friday, 4 March 2016

नाजुक दिल इंसान है “प्रवेश”



परेशान दिल मेरा फिरे मारा मारा
मैं हूँ आवारा या दिल मेरा है आवारा
,
कुछ दिनों से गुमसुम सा रहता हूँ
जब से छुटा है एक दामन का सहारा
,
बीच दरिया में हूँ, दूर साहिलों से हूँ
अब नसीब में नहीं है मेरे किनारा,
नाजुक दिल इंसान है “प्रवेश”
कैसे जियेगा अब अकेला ये बेचारा
|

Thursday, 3 March 2016

आज भी वो सूरत प्यारी लगती है


हिज्र की रात भी कितनी भारी होती है,
मगर दीवानों की अपनी तैयारी होती है।
लगा दो आग अब बेशक सारे बदन को ,
हिज्र में जलता हो उसे कहाँ चिंगारी लगती है।
छोड़कर गई थी जो हमें बड़ी बेरहमी से ,
हमें तो आज भी वो सूरत प्यारी लगती है।
मेरा घर तो कब का जलकर ख़ाक हो गया,
अब तो अपना मकान ये धरती सारी लगती है।
उसने मुझे मिटाने के सारे अरमान पूरे कर लिए,
अब इस शरीर को मिट्टी में मिलाना मेरी जिम्मेदारी लगती है।