Sunday, 6 March 2016

खुश है वो शख्स आज मगर


एक उम्र गुज़ार दी हमने तनहाईयों में
बची खुची अब गुजर रही हैं रुसवाईयों में।
गम की सिसकियाँ सुनता भी कोई तो कैसे
दर्द की आवाज़ दब गई शहनाईयों में |
सारे शहर की रौनक जिसे बहला न सकी
खुश है वो शख्स आज मगर वीरानीयों में।
रहने दो मुझे अँधेरों में, मैं यही अच्छा हूँ
डर लगता है अब मुझे शहर की रंगीनियों में।

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