Thursday, 17 March 2016

तो उनके लबों पे हँसीं ना रही



हमें चाहने वालों की कभी कमी ना रही,
कभी आसमां ना रहा कभी जमीं ना रही।
मैं दर्द छिपाकर मुस्कुराता रहा सदा ,
लोगों को शिकायत कि मेरी आँखों में नमी ना रही।
मेरी चाहते थे सलामती तो खुश रहते वो ,
मगर मैं हंसा तो उनके लबों पे हँसीं ना रही।
मेरे अंदाज अलग हैं और मैं इनही में खुश हूँ,
चाहे किसी को मुझसे शिकायत रही रही या ना रही

Sunday, 13 March 2016

किसको बोलूँ और बोलूँ क्यूँ



मेरे मन की बात है तुझ पे थोपूँ क्यूँ ,
मेरी जिम्मेदारी है ये तुझ को सोपूँ क्यूँ।
मैं जैसा भी हूँ ये तू जाने ये तेरा काम ,
मैं अपने बारे में खुद ही भोँकू क्यूँ।
बड़ी मुश्किल से पाया है भरोसा लोगों का ,
अब कौड़ियों की ख़ातिर मैं इसको खोदूँ क्यूँ।
ये जनसमुदाय बहरा है और खुदगर्ज भी है,
इसकी ख़ातिर किसको बोलूँ और बोलूँ क्यूँ।
ऊपरवाला करेगा इंसाफ हुकूमत के सँपोले का,
मैं साँप से खेलूँ क्यूँ मैं सपेरों से बोलूँ क्यूँ |

Friday, 11 March 2016

ख़ुदा मेरे हक में फैसला करदे


गरीब की गरीबी पर हँसने वाले ,
मर जाते हैं कभी-कभी डसने वाले।
 
दोगलों से दोस्ती में एहतियात बरतना ,
वो वक्त पर नहीं कभी काम आने वाले।
अमीरी रात सड़कों पे अधनंगी घूमती है,
यही कमाया तो क्या कमाया,कमाने वाले।
हाड मांस का पुतला बनाया जान डाल दी,
उसके बाद क्यों हमें भूल गया बनाने वाले।
अब भी वक्त है ख़ुदा मेरे हक में फैसला करदे ,
बाद में हम नही तेरे कहने से कहीं भी जाने वाले।