Monday, 4 April 2016

संसारी और सन्यासी में फर्क़: मनोदशा

जीवन वही है संसारी का भी, संन्यासी का भी, मनःस्थिति भिन्न है। वही सब घटेगा जो घट रहा है। वही दूकान चलेगी, वही पत्नी होगी, वही बेटे होंगे, वही पति होगा, लेकिन संन्यासी की मनःस्थिति और है। वह जिंदगी को किन्हीं और दृष्टिकोणों से देखने की कोशिश कर रहा है। संसारी की मनःस्थिति और है।
संसार और संन्यास मनःस्थितियां हैं, मेंटल एटीटयूड्स हैं। इसलिए परिस्थितियों से भागने की कोई भी जरूरत नहीं है। परिस्थितियों को बदलने की कोई भी जरूरत नहीं है। और बड़े आश्चर्य की बात है कि जब मनःस्थिति बदलती है तो परिस्थिति वही नहीं रह जाती। क्योंकि परिस्थिति वैसी ही दिखाई पड़ने लगती है जैसी मनःस्थिति होती है।
जो आदमी संसार छोड़कर, भागकर संन्यासी हो रहा है, वह भी अभी संसारी है। क्योंकि उसका अभी विश्वास परिस्थिति पर है। वह भी सोचता है, परिस्थिति बदल लूंगा तो सब बदल जाएगा। वह अभी संसारी है।
संन्यासी वह है, जो कहता है कि मनःस्थिति बदलेगी तो सब बदल जाएगा। मनःस्थिति बदलेगी, सब बदल जाएगा, ऐसा जिसका भरोसा है, ऐसी जिसकी समझ है, वह आदमी संन्यासी है।
 ओशो

Sunday, 3 April 2016

फूलों प तो हर भँवरा मर मिटता है


तकदीर के लिखे को बदलना कितना मुश्किल है,
किसी लड़की को समझना कितना मुश्किल है।
बदलने की चाहत तो सभी रखते हैं ,
मगर खुद को बदलना कितना मुश्किल है।
गिर तो सभी जाते हैं कहीं ना कहीं फिसलकर,
मगर फिसलकर संभलना कितना मुश्किल है।
फूलों प तो हर भँवरा मर मिटता है,
मगर काँटों पे मर मिटना कितना मुश्किल है।
जिसे तुम चाहो उसे प्यार करना है आसान बहुत,
मगर जो तुम्हें चाहे उसे चाहना कितना मुश्किल है।
रेशमी कालीन पर चलते रहे इसमें क्या शान है ,
मगर संघर्ष की डगर पे चलना कितना मुश्किल है।
औरों के नुक्स गिनते हुए एक उम्र गुज़ार दी मगर,
आईने में देखके जाना कि खुद से मिलना कितना मुश्किल है।

Friday, 1 April 2016

एक तीर सा चुभता रहता है


मैं इंसान हूँ मुझे इंसान ही रहने दो,
ये दर्द है मेरा मुझे अकेले ही सहने दो,
सो रहा था जिन्दा लाशो में सदियों से,
आज उठा हूँ मुझे कुछ तो कहने दो
एक तीर सा चुभता रहता है सीने में,
मत छेड़ो उसे, ऐसे ही रहने दो
हर कोई खेलता है मेरे ज़ज्बातों से,
आज मेरा मन है मुझे भी खेलने दो
तुम लखपति सही अपने घर में हो,
मैं फ़कीर हूँ मुझे फ़कीर ही रहने दो.
मंदिर मस्जिदों में नहीं जाना मुझे,
मेरा भगवान् मेरे अंदर है उसे अंदर ही रहने दो