Sunday 3 April 2016

फूलों प तो हर भँवरा मर मिटता है


तकदीर के लिखे को बदलना कितना मुश्किल है,
किसी लड़की को समझना कितना मुश्किल है।
बदलने की चाहत तो सभी रखते हैं ,
मगर खुद को बदलना कितना मुश्किल है।
गिर तो सभी जाते हैं कहीं ना कहीं फिसलकर,
मगर फिसलकर संभलना कितना मुश्किल है।
फूलों प तो हर भँवरा मर मिटता है,
मगर काँटों पे मर मिटना कितना मुश्किल है।
जिसे तुम चाहो उसे प्यार करना है आसान बहुत,
मगर जो तुम्हें चाहे उसे चाहना कितना मुश्किल है।
रेशमी कालीन पर चलते रहे इसमें क्या शान है ,
मगर संघर्ष की डगर पे चलना कितना मुश्किल है।
औरों के नुक्स गिनते हुए एक उम्र गुज़ार दी मगर,
आईने में देखके जाना कि खुद से मिलना कितना मुश्किल है।

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