Monday, 30 November 2015

जो भी संघर्ष से लड़ा है

मत सोच कि तेरा दुःख बड़ा है
देख ख़ुदा तेरे साथ खड़ा है,
जो भी संघर्ष से लड़ा है
वही हिमालय चोटी पे चढ़ा है
अभी तेरी कोशिश थोड़ी अधूरी है,
पर ख़ुदा को याद करना भी जरूरी है
लड़ते-लड़ते रुक मत जाना,
मुसीबतों से कभी ना घबराना
ख़ुशी से गा तू कोई तराना,
कि देखता रह जाये ज़माना.
कुछ करने की इच्छा तेरी पूरी है,
पर ख़ुदा को याद करना भी जरूरी है
चलता रह तू सीना तान
डर कर तू हार ना मान,
लड़ना ही है तेरी शान
जब तक है शारीर में जान
बस मंजिल से थोड़ी सी दूरी है,
पर ख़ुदा को याद करना भी जरूरी है
देख तेरी मंजिल आ गई,
हर मुसीबत तुझसे घबरा गई,
खुशियों की बूंदे आ गई,
एक ताकत है तुझमे समां गई.
कोशिश हुई तेरी आज पूरी है,
पर ख़ुदा को याद करना भी जरूरी है


Parvesh Kumar

जिंदा हूँ मैं अब बस कलम के वास्ते

सीधी सी इस ज़िन्दगी के टेढ़े मेढे रास्ते
ऐ ख़ुदा क्या है बस ये मेरे ही वास्ते,
झूठे लगने लग गए अब सनम के रास्ते
अब जिंदा हूँ मैं ऐ ‘कलम’ बस तेरे ही वास्ते
क्या कमी है मुझमे जो मिलती नहीं मंजिल
हर आज गुजर जाता है बनकर मेरा कल,
कोई कहता है रहने दे कोई कहता है चल
कोई कहे मुझे सयाना कोई कहे बेअकल
क्यूँ दी है ख़ुदा ने मुझे ज़िन्दगी
है नहीं जब यहाँ किसी के पास बंदगी,
मैं हूँ बेकार या दुनिया में है गन्दगी
पूछूँगा ख़ुदा से गर मुलाकात हो गई कभी
मेरी दुनिया है अलग मैं अकेला हूँ यहाँ
सब रास्तों से जुदा है मेरी मंजिल के रास्ते,
मारने से भी मैं ना मरूँगा यहाँ
क्यूंकि जिंदा हूँ मैं अब बस कलम के वास्ते


Parvesh Kumar

Sunday, 29 November 2015

ये हम अपनी ग़ज़ल किसे सुना रहे हैं

मेरे जन्मदिन पर क्यूँ लोग खुशियाँ मना रहे हैं,
इतनी सी बात पर मेरी आँखों से आंसू आ रहे हैं
हर साल हो जाता है खामखाँ गम में इजाफा,
ये किस दौर में किस सिम्त हम जा रहे हैं,
होने वाली है रात अब तो घर जाओ अपने,
तुम्हारी बस्ती के अँधेरे तुम्हे बुला रहे हैं
एक भी इंसान नहीं बैठा महफ़िल में ‘प्रवेश’,
ये हम अपनी ग़ज़ल किसे सुना रहे हैं


Parvesh Kumar