मेरे जन्मदिन पर क्यूँ लोग खुशियाँ मना रहे हैं,
इतनी सी बात पर मेरी आँखों से आंसू आ रहे हैं
हर साल हो जाता है खामखाँ गम में इजाफा,
ये किस दौर में किस सिम्त हम जा रहे हैं,
होने वाली है रात अब तो घर जाओ अपने,
तुम्हारी बस्ती के अँधेरे तुम्हे बुला रहे हैं
एक भी इंसान नहीं बैठा महफ़िल में ‘प्रवेश’,
ये हम अपनी ग़ज़ल किसे सुना रहे हैं
Parvesh Kumar
इतनी सी बात पर मेरी आँखों से आंसू आ रहे हैं
हर साल हो जाता है खामखाँ गम में इजाफा,
ये किस दौर में किस सिम्त हम जा रहे हैं,
होने वाली है रात अब तो घर जाओ अपने,
तुम्हारी बस्ती के अँधेरे तुम्हे बुला रहे हैं
एक भी इंसान नहीं बैठा महफ़िल में ‘प्रवेश’,
ये हम अपनी ग़ज़ल किसे सुना रहे हैं
Parvesh Kumar
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