Wednesday, 11 May 2016

देखे हैं मैंने आज कई चेहरे गौर से



उलझी हुई है ज़िन्दगी मुसीबतों की डोर से
ये आ रही है सदा दुआओं की किस ओर से
,
गया था मैं समंदर में मच्छलियों से मिलने
घेरा मुझे मगरमच्छों ने चारों ओर से
,
चुनाव के बाद निगल गए सब जनता को
वोट मांगने आए थे जो सब के सब चोर थे
,
भ्रष्टाचारी की गाथा लिए फिरते हैं बहूत लोग
देखे हैं मैंने आज कई चेहरे गौर से
,
वीरानों में आया तो मारा है तन्हाई ने
मुश्किल से बचकर आए थे भीड़ के शौर से
,
अब कोई नया नामकरण करना होगा भारत का
गूंजती है हर दिशा यहाँ गुनाहों के शौर से
|


“प्रवेश कुमार”

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Sunday, 8 May 2016

बेवफाओं, आओ मैं तुमसे प्यार करता हूँ



मैं मनमौजी हूँ मौज करता हूँ
दिन हो कोई हर रोज करता हूँ
,
भूल गया हूँ मैं अपना दिल देकर
अब दिन रात उसकी खोज करता हूँ
,
खुश्क लम्हों का जब मौसम आता है
गर्म आंसू से मैं पैदा आग करता हूँ
,
खुशियों में भी कभी खुश ना हुआ
अब बरबादियों पर अपनी नाज़ करता हूँ
,
इश्क़ के महलों में आराम ना मिला
अब तनहाइयों के खंडरपर राज़ करता हूँ
,
टूटे हुए को और क्या तोड़ेगा कोई
आओ करो बर्बाद मैं आगाज़ करता हूँ
,
टुटा दिल हो या शीशा फिर नहीं जुड़ता
मैं दिल के टुकड़ो का हिसाब करता हूँ
,
ठोकर खाकर गिरना जारी है अब तक
पर उठने की कोशिश हर बार करता हूँ
,
कोई खले मुझसे खुला दरबार है
मैं किसी को नहीं इनकार करता हूँ
,
बेवफाओं से अब मुझे डर नहीं लगता
बेवफाओं, आओ मैं तुमसे प्यार करता हूँ
|
“प्रवेश कुमार”


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Friday, 6 May 2016

ज़िन्दगी चुपके से कान में क्या कह गई



हम हैं वही बस मुश्किलें बढ़ गई
मंजिल आने से पहले हालात बदल गई
,
पहले चाहत और थी अब चाहत कुछ और है
इस तरह ज़िन्दगी बेमकसद सी रह गई
,
गुमनामी में थे तो ठीक थे हम
नाम हुआ तो दिक्कतें भी बढ़ गई
,
शर्म थी, हया थी, प्यार की रस्में भी थी
अब इश्क़ केवल बर्बादी की वजह रह गई
,
क्या करूँ फैसला असमंजस में हूँ
ज़िन्दगी चुपके से कान में क्या कह गई
?