मैं मनमौजी हूँ मौज करता हूँ
दिन हो कोई हर रोज करता हूँ,
भूल गया हूँ मैं अपना दिल देकर
अब दिन रात उसकी खोज करता हूँ,
खुश्क लम्हों का जब मौसम आता है
गर्म आंसू से मैं पैदा आग करता हूँ,
खुशियों में भी कभी खुश ना हुआ
अब बरबादियों पर अपनी नाज़ करता हूँ,
इश्क़ के महलों में आराम ना मिला
अब तनहाइयों के खंडरपर राज़ करता हूँ,
टूटे हुए को और क्या तोड़ेगा कोई
आओ करो बर्बाद मैं आगाज़ करता हूँ,
टुटा दिल हो या शीशा फिर नहीं जुड़ता
मैं दिल के टुकड़ो का हिसाब करता हूँ,
ठोकर खाकर गिरना जारी है अब तक
पर उठने की कोशिश हर बार करता हूँ,
कोई खले मुझसे खुला दरबार है
मैं किसी को नहीं इनकार करता हूँ,
बेवफाओं से अब मुझे डर नहीं लगता
बेवफाओं, आओ मैं तुमसे प्यार करता हूँ|
“प्रवेश कुमार”दिन हो कोई हर रोज करता हूँ,
भूल गया हूँ मैं अपना दिल देकर
अब दिन रात उसकी खोज करता हूँ,
खुश्क लम्हों का जब मौसम आता है
गर्म आंसू से मैं पैदा आग करता हूँ,
खुशियों में भी कभी खुश ना हुआ
अब बरबादियों पर अपनी नाज़ करता हूँ,
इश्क़ के महलों में आराम ना मिला
अब तनहाइयों के खंडरपर राज़ करता हूँ,
टूटे हुए को और क्या तोड़ेगा कोई
आओ करो बर्बाद मैं आगाज़ करता हूँ,
टुटा दिल हो या शीशा फिर नहीं जुड़ता
मैं दिल के टुकड़ो का हिसाब करता हूँ,
ठोकर खाकर गिरना जारी है अब तक
पर उठने की कोशिश हर बार करता हूँ,
कोई खले मुझसे खुला दरबार है
मैं किसी को नहीं इनकार करता हूँ,
बेवफाओं से अब मुझे डर नहीं लगता
बेवफाओं, आओ मैं तुमसे प्यार करता हूँ|
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Nice Ghazal.
ReplyDeleteThanks for sharing with us