Wednesday, 11 November 2015

सर्दी की गीली रातों में यौवन से नहाया जाता है


कडकडाती सर्दी में जब एक कम्बल होता है,
हरेक जोड़ा फिर उस कम्बल में ही सोता है.
ऑफिस की थकावट को गर्म पसीनों से बहाया जाता है,
सर्दी की गीली रातों में यौवन से नहाया जाता है.
मीठी-मीठी बातों से फिर समां रंगीन हो जाता है,
चरम सीमा पर पहुँच कर प्यार कुछ मीठा कुछ नमकीन हो जाता है.
हर भाव आपस में कुछ ऐसे मिल जाता है,
वीर रस जाकर फिर अंतर्मन में घुल जाता है.
रात भर की खटपट के बाद जब सुबह हो जाती है,
दोनों की ज़िन्दगी फिर तारो ताज़ी हो जाती है


Parvesh Kumar 

Tuesday, 10 November 2015

कभी बहन, कभी बीवी बनकर हर कदम उसे संभाला है


देखा मैंने हर द्वार पर पुरुष के नाम जड़े हुए,
ऐ औरत तेरे अधिकार हैं कहाँ पड़े हुए,
क्यों तेरा कोई अधिकार नहीं है
क्यों तेरा कोई आधार नहीं है |
माँ बनकर तूने पुरुष को अपने प्राण-पुष्पों से पाला है,
कभी बहन, कभी बीवी बनकर हर कदम उसे संभाला है |
तेरे बिना नहीं संसार की कोई कल्पना है
सुखी आँखें है, ना आँसू, ना प्यार, ना सपना है |
चार दीवारों से निकली है आज़ाद तो हुई है मगर,
‘लड़का लड़की एक समान’ नारों में बंधी है
अभी पूरी आज़ाद कहाँ हुई है |
संस्कृति की नक़ल हुई मगर सोच नहीं बदली,
संशय में हूँ ये समाज असली है या नकली |
बदलाव नियम है इसलिए उम्मीद अभी जिंदा है,
एक दिन आज़ाद हो जायेगा इस पिंजरे में जो परिंदा है |

Parvesh Kumar 




कभी वो मेरी होती है कभी हम उनके होते हैं


वैसे तो लड़के बहूत कम रोते हैं,
मगर ये भी रोते हैं जब गम होते हैं.
रात में बारिश देखना हो, आना मेरे दर पे,
यहाँ सारी रात आँखों में आंसू होते हैं,
खूली आँखों से भी देखता हूँ सपने उसके ,
इसीलिए रातों में भी हम कम सोते हैं ,
आएगी हर सुबह मंजिल की खुशबू लेकर,
नींद नहीं आती अब सिर्फ इंतजार होते हैं .
मिल जाएँ उसे ज़माने भर की खुशियाँ ,
बस अब तो हर वक़्त यही दुआ करते हैं,
जबसे खायी है कसम उसने तूफानों से लड़ने की ,
तब से हम हर तूफानों में दिया जलाते हैं.
जब दिये की लौ लडती है हवाओं से,
कभी वो मेरी होती है कभी हम उनके होते हैं


Parvesh Kumar