कडकडाती सर्दी में जब एक कम्बल होता है,
हरेक जोड़ा फिर उस कम्बल में ही सोता है.
ऑफिस की थकावट को गर्म पसीनों से बहाया जाता है,
सर्दी की गीली रातों में यौवन से नहाया जाता है.
मीठी-मीठी बातों से फिर समां रंगीन हो जाता है,
चरम सीमा पर पहुँच कर प्यार कुछ मीठा कुछ नमकीन हो जाता है.
हर भाव आपस में कुछ ऐसे मिल जाता है,
वीर रस जाकर फिर अंतर्मन में घुल जाता है.
रात भर की खटपट के बाद जब सुबह हो जाती है,
दोनों की ज़िन्दगी फिर तारो ताज़ी हो जाती है
Parvesh Kumar
No comments:
Post a Comment