Sunday, 22 November 2015

कागज़ की पत्तियों का हर कोई पुजारी है

नफरत ही नफरत से छिक सा गया हूँ मैं,
सुन-सुन कर सबकी बातें थक सा गया हूँ मैं.
हर एक चेहरे ने मुझे घुर कर देखा है,
कसूर मेरा है क्या मेरे हाथ में कौनसी रेखा है.
रोटी भी अपनी नहीं आसमान ही घरोंदा है,
पत्थर की मूरत से मांगी हुई दुआ में जिंदा हैं.
पैसे वालों के घर जाकर थोकर ही खाई है,
दर-दर जाकर मैंने ये ज़िन्दगी कमाई है.
कागज़ की पत्तियों का हर कोई पुजारी है,
दौलत की इस दुनिया में सिर्फ मतलब की यारी है.
पत्थर की आँखों से मैंने अश्क बहाए हैं,
जो खुशियाँ थी कल मेरी आज वो जलवे पराये हैं.
अपनी सूरत देखने को शीशे की अलमारी खोली है,
मुक्ति पाने की चाहत में मैंने हरेक कब्र टटोली है


Parvesh Kumar 

Friday, 20 November 2015

सुख दुःख किस्मत के संगी साथी

साथी रूठा दिल भी हमारा टूट गया ,
साथ था जो सदियों से वो भी छूट गया
ख़त्म हुई इन्तहा अब इश्क़ की,

दिल जो था प्यार का सागर सूख गया
सुख दुःख किस्मत के संगी साथी,
हमसे तो ख़ुदा भी हमारा रूठ गया,
पकडे हुए थे दामन खुशियों का कब से,
आया हवा का झोंका दामन 
छूट गया,
हुई है ख़ता मंजिल भी खफ़ा है ,
किस्मत किस्मत कहते था साथ उसका छूट गया,
इस दौराही ज़िन्दगी को अब कैसे जियूँ ,
न कहना ऐ ज़िन्दगी क्यूँ तू हमसे रूठ गया
Parvesh Kumar 

कहीं शमा जली कहीं जल गया परवाना

दिल मेरा टूटा और चकनाचूर हो गया ,
इस कदर उसे खुदपर गुरुर हो गया
कहीं शमा जली कहीं जल गया परवाना ,
हर कोई यहाँ पर मगरूर हो गया
जब देखा ख़ुदा ने नहीं इंसानियत यहाँ पर,
वो अपनी बनाई दुनिया से ही दूर हो गया
Parvesh Kumar