Tuesday, 8 December 2015

सच, ईमान, ज़मीर, ये सब भी बीमारी है

ज़िन्दगी का एक एक पल बोझ भारी है,
गरीबी, भूख की लडाई अभी तक जारी है,
खून पसीना बहाकर भी घर खाली है,
सेठों की तिजौरी में गाढ़ी कमाई हमारी है
पड़े लिखो को बेरोजगार देखा तो समझ आया,
भीख मांगना भी इन भीखमंगो की लाचारी है
इमानदारी, विनम्रता से चलते-चलते भूखे मर गए,
पेट निकल गए उनके जो भी अत्याचारी हैं
नेता ने एलान किया हम समृद्धि की राह पर हैं,
पर यहाँ तो गली गली में बेकारी है
अब दर दर ठोकर खाकर सीख गया ‘प्रवेश’,
सच, ईमान, ज़मीर, ये सब भी बीमारी है

दिन में भीड़ में मैंने दिल को बहलाया है

दिन में भीड़ में मैंने दिल को बहलाया है,
रातों में खिल्वत में इसने बहूत मुझे रूलाया है
दिल की गलियाँ करके गई वो बर्बाद,
वो उतना ही याद आया जितना उसे भुलाया है
गिडगिडा-गिडगिडा कर हमने गवां दी कद्र अपनी,
उसने मुड़ कर भी नहीं देखा कितना उसे बुलाया है
मैं बैठा था उदास हवा ले आई उसकी खुशबू,
ये बेदर्द हवा का झोंका किस और से आया है
छोड़ आओ अब “प्रवेश” को मयखानों में,
आवाज़ आ रही है, लगता है साकी ने बुलाया है


Monday, 7 December 2015

चाहे दोस्त बने या दुश्मन बने ज़माना

तूने जब से मुझको छुआ है
कोई भी सपर्श अच्छा नहीं लगता,
झूठा-झूठा सा लगता है
मुझे तेरे सिवा हरेक रिश्ता
तेरे ख्यालों के साथ मैं
हर वक़्त रहना चाहता हूँ,
इसलिए दो मिनट की दूरी मैं
दस मिनट में तय करता हूँ
तेरे मेरे बीच जो आए
मुझे दुश्मन नजर आता है,
मैं कोशिश करता हूँ तुझे भुलाने की
मगर दिल भूले नहीं भूलाता है
ये तेरा मेरा रिश्ता अब
जाने क्या-क्या रंग दिखलायेगा,
मुझको तो ये जानना है कि
कौन इसे अपनाएगा और कौन ठुकराएगा
तू इक अकेली मेरी ताकत है
तू दामन अपना मुझसे छुड़ा ना लेना,
तू साथ रहना हर घड़ी, हर वक़्त
चाहे दोस्त बने या दुश्मन बने ज़माना