Tuesday, 8 December 2015

दिन में भीड़ में मैंने दिल को बहलाया है

दिन में भीड़ में मैंने दिल को बहलाया है,
रातों में खिल्वत में इसने बहूत मुझे रूलाया है
दिल की गलियाँ करके गई वो बर्बाद,
वो उतना ही याद आया जितना उसे भुलाया है
गिडगिडा-गिडगिडा कर हमने गवां दी कद्र अपनी,
उसने मुड़ कर भी नहीं देखा कितना उसे बुलाया है
मैं बैठा था उदास हवा ले आई उसकी खुशबू,
ये बेदर्द हवा का झोंका किस और से आया है
छोड़ आओ अब “प्रवेश” को मयखानों में,
आवाज़ आ रही है, लगता है साकी ने बुलाया है


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