Tuesday, 15 December 2015

बेवफ़ा को कैसे मैं भूला पाउँगा,

बेवफ़ा को कैसे मैं भूला पाउँगा,
दर्द बढ़ेगा तो अब कहाँ मैं जाऊंगा
जला दिया अपना घर अपने ही हाथों से,
दिन ढलते ही मयखाने को अब जाऊंगा
आश्ना थे जो कभी अजनबी से रहते हैं,
कैसे मैं अब यहाँ नए रिश्ते बनाऊंगा
ना आना तू भी अब मेरी अयादत को,
पिऊंगा शराब और अब ग़ज़ल मैं गाऊंगा
अश्कों का समंदर सुखा लेने दो मुझको,
बाद उसके जाम को मैं हाथ ना लगाऊंगा
मेरी लाश को बेवफ़ा से दूर ही रखना यारों,
जन्नत में, मैं मयखाना कहाँ से लाऊंगा
‘प्रवेश’ तो चला दूर इस दुनिया से,
अब तो ख़ुदा को अपनी मोहब्बत के किस्से सुनाऊंगा


मैय्यत में उसकी कोई भी ना जाये

सच्चा प्यार उसको कभी नसीब ना हो,
मेरे जैसा दुनिया में कोई गरीब ना हो,
तडपती रहे वो उम्रभर अकेली,
कभी भी उसके कोई करीब ना हो
ठोकर लगे उसे हर एक कदम पर,
मंजिल के जब भी करीब वो हो
याद आए उसको हरपल मेरी,
मैं मिल जाऊं ऐसा उसका नसीब ना हो
रह सके वो अपनी बस्ती में सलामत,
ऐसा भी उसका कोई रकीब ना हो
मैय्यत में उसकी कोई भी ना जाये,
ख़ुदा करे उसको कान्धा कोई नसीब न हो


मयखाने में चलो आज महफ़िल सजाओ

मयखाने में चलो आज महफ़िल सजाओ,
दिल में है दर्द बहूत, कुछ तो घटाओ
जाम पे जाम मुझे पीने दे साकी,
ना बहूत सुनी मैंने अब बहाना ना बनाओ
दौलत, मोहब्बत कुछ भी ना मिला मुझे,
ख़ुदा को मुझे तुम याद ना दिलाओ
घुल जाने दो तुम शराब में मुझको,
पीने की आदत अब मेरी न छुडाओ
मंदिर-मस्जिद मैंने इबादत भी की है,
मयखाने में अब तुम ग़ज़ल कोई सुनाओ
शराब में वफ़ा ही वफ़ा है साकी,
बेवफ़ा का नाम अब याद ना दिलाओ
एक कोना मयखाने में बख्श दो मुझको,
जाओ रकीबों शौक से मेरे घर को जलाओ
मेरे आशियाने में गम-ऐ-तन्हाई है,
मुझे मेरे घर का पता ना बताओ
मर जाने दो मुझे तडपते तडपते,
पत्थर दिल को मगर तुम न बुलाओ
कुछ दिनों का बस मेहमान है “प्रवेश”,
जी भरकर तब तक यारों शराब पिलाओ