Tuesday, 15 December 2015

बेवफ़ा को कैसे मैं भूला पाउँगा,

बेवफ़ा को कैसे मैं भूला पाउँगा,
दर्द बढ़ेगा तो अब कहाँ मैं जाऊंगा
जला दिया अपना घर अपने ही हाथों से,
दिन ढलते ही मयखाने को अब जाऊंगा
आश्ना थे जो कभी अजनबी से रहते हैं,
कैसे मैं अब यहाँ नए रिश्ते बनाऊंगा
ना आना तू भी अब मेरी अयादत को,
पिऊंगा शराब और अब ग़ज़ल मैं गाऊंगा
अश्कों का समंदर सुखा लेने दो मुझको,
बाद उसके जाम को मैं हाथ ना लगाऊंगा
मेरी लाश को बेवफ़ा से दूर ही रखना यारों,
जन्नत में, मैं मयखाना कहाँ से लाऊंगा
‘प्रवेश’ तो चला दूर इस दुनिया से,
अब तो ख़ुदा को अपनी मोहब्बत के किस्से सुनाऊंगा


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