Sunday, 10 January 2016

मैं हूँ रावण मैं हूँ राम

अच्छाई और बुराई में फर्क है क्या
ये मैं बिलकुल नहीं जानता,
करता हूँ मैं हर वो काम
मेरा दिल जो ठीक मानता,
कोई पूछता है जब मुझसे मेरा नाम
मैं कहता हूँ.............
मैं हूँ रावण मैं हूँ राम |
हाथ में कागज़, कलम लेकर
मैं दुनिया को देखता हूँ,
इसकी खातिर हर चौक-चौराहे
फूटपाथ पर भी बैठता हूँ,
कोई पूछता है जब मुझसे मेरा काम
मैं कहता हूँ.............
मैं हूँ रावण मैं हूँ राम |
मैं रोते को देखकर हँसता हूँ,
तो कभी-कभी साथ में ही रो देता हूँ,
कभी-कभी तो अपना साथ छोड़कर
मैं किसी और के साथ हो लेता हूँ,
कोई पूछता है मैं कैसा हूँ इंसान
मैं कहता हूँ.............
मैं हूँ रावण मैं हूँ राम |
मैं खुद भी कभी लड़ता हूँ,
बिन बात लोगों से झगड़ता हूँ,
कसूर बेशक हो मेरा ही
मैं खुद को ही ठीक समझता हूँ,
कोई पूछता है क्या तू है शैतान
मैं कहता हूँ.............
मैं हूँ रावण मैं हूँ राम |

दुनिया में अपराध देखकर
खुद से मैंने यही पूछा,
क्या तू है सही या
तू भी है इन सबके जैसा
मेरे अन्दर हो गया सब सुनसान,
मैं इतना ही कह पाया.............
मैं हूँ रावण मैं हूँ राम |


Wednesday, 6 January 2016

याद आते हैं अब वो दिन सुन्हेरे

मोहब्बत से जब हम दूर थे ठहरे,
याद आते हैं अब वो दिन सुन्हेरे
कज़ा आई थी भेष बदलकर सामने,
मुझे लगे बहूत हसीन वो चेहरे
प्यार की जंजीरों ने जकड़ा हमको,
इश्क़ के हमपर लगने लग गए पहरे
रुसवा जब से हमें वो करके गयी,
पड़े हुए हैं हम तबसे बिखरे बिखरे
अब हिज्र का मौसम रहता है,
आँखों से बरसते रहते हैं फव्वारे
आशियाना मेरा पहले रहता था रोशन,
अब मेरे घर में बस रहते हैं अँधेरे
बस ये शबे-गम रो कर बिता लूँ,
आ जाएगी मौत मुझको कल सवेरे
अपने दम से जिन्दा है आज ‘प्रवेश’,
कल चार कांधों के चाहियेंगे सहा
रे |

Monday, 4 January 2016

अगर अपना देश ऐसा बन जाए

लोकतंत्र हो या प्रजातंत्र
अपने देश में चलता है भ्रष्ट-मंत्र,
जनता देश की भूखी है
नेताओं के घर भरें है,
इमानदार अकेले खड़े हैं,
बेईमानों के दल बने हैं
|
गुन्हेगार नेताओं की गोद में पलते हैं
बेगुनाह यहाँ जेलों में सड़ते हैं
जान-पहचान है तो सब हासिल है,
और गरीब का यहाँ हाल बद्द्तर है
गरीब के पास सब होते हुए भी चालान कटते हैं,
जान-पहचान वाले बिन हेलमेट चलते हैं
मौत कोई भेदभाव नहीं करती तो
ये वर्दी वाले क्यूँ भेद भाव करते हैं
पैसे वाले का आज बोलबाला है,
गरीब के मुँह पर ताला है,
कानून बनाने वाले कानून तोड़ते हैं,
हर जुर्म को पैसों में तोलते हैं
सात साल की सज़ा पाते हैं बलात्कारी
जेल से निकलते हैं बनकर सरकारी
बलात्कारी को क्यूँ नहीं देते ऐसी सज़ा कि
ज़िन्दगी में ना कर सके वो ऐसी खता
खुनी को ना तुम माफ़ करो
ऐसी गन्दगी को दुनिया से साफ़ करो
पैसे वाले कानून को समझते हैं अपनी दासी
भ्रष्टाचारी को क्यूँ नहीं देते फांसी
अगर अपना देश ऐसा बन जाए,
तो दिन दुगुनी रात चौगुनी उन्नति पाए