लोकतंत्र हो या प्रजातंत्र
अपने देश में चलता है भ्रष्ट-मंत्र,
जनता देश की भूखी है
नेताओं के घर भरें है,
इमानदार अकेले खड़े हैं,
बेईमानों के दल बने हैं |
गुन्हेगार नेताओं की गोद में पलते हैं
बेगुनाह यहाँ जेलों में सड़ते हैं
जान-पहचान है तो सब हासिल है,
और गरीब का यहाँ हाल बद्द्तर है
गरीब के पास सब होते हुए भी चालान कटते हैं,
जान-पहचान वाले बिन हेलमेट चलते हैं
मौत कोई भेदभाव नहीं करती तो
ये वर्दी वाले क्यूँ भेद भाव करते हैं
पैसे वाले का आज बोलबाला है,
गरीब के मुँह पर ताला है,
कानून बनाने वाले कानून तोड़ते हैं,
हर जुर्म को पैसों में तोलते हैं
सात साल की सज़ा पाते हैं बलात्कारी
जेल से निकलते हैं बनकर सरकारी
बलात्कारी को क्यूँ नहीं देते ऐसी सज़ा कि
ज़िन्दगी में ना कर सके वो ऐसी खता
खुनी को ना तुम माफ़ करो
ऐसी गन्दगी को दुनिया से साफ़ करो
पैसे वाले कानून को समझते हैं अपनी दासी
भ्रष्टाचारी को क्यूँ नहीं देते फांसी
अगर अपना देश ऐसा बन जाए,
तो दिन दुगुनी रात चौगुनी उन्नति पाए
अपने देश में चलता है भ्रष्ट-मंत्र,
जनता देश की भूखी है
नेताओं के घर भरें है,
इमानदार अकेले खड़े हैं,
बेईमानों के दल बने हैं |
गुन्हेगार नेताओं की गोद में पलते हैं
बेगुनाह यहाँ जेलों में सड़ते हैं
जान-पहचान है तो सब हासिल है,
और गरीब का यहाँ हाल बद्द्तर है
गरीब के पास सब होते हुए भी चालान कटते हैं,
जान-पहचान वाले बिन हेलमेट चलते हैं
मौत कोई भेदभाव नहीं करती तो
ये वर्दी वाले क्यूँ भेद भाव करते हैं
पैसे वाले का आज बोलबाला है,
गरीब के मुँह पर ताला है,
कानून बनाने वाले कानून तोड़ते हैं,
हर जुर्म को पैसों में तोलते हैं
सात साल की सज़ा पाते हैं बलात्कारी
जेल से निकलते हैं बनकर सरकारी
बलात्कारी को क्यूँ नहीं देते ऐसी सज़ा कि
ज़िन्दगी में ना कर सके वो ऐसी खता
खुनी को ना तुम माफ़ करो
ऐसी गन्दगी को दुनिया से साफ़ करो
पैसे वाले कानून को समझते हैं अपनी दासी
भ्रष्टाचारी को क्यूँ नहीं देते फांसी
अगर अपना देश ऐसा बन जाए,
तो दिन दुगुनी रात चौगुनी उन्नति पाए
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