Saturday, 6 February 2016

ईमारत ही ईमारत चारों ओर है


ईमारत ही ईमारत चारों ओर है
कोई बताये इंसानों का बसेरा किस ओर है |
भोली भाली सूरत देखी इंसान अच्छे लगे
दिलों में देखा सब के सब चोर हैं |
सुनसान जगह पर भी रहने नहीं देता
ना जाने ये अन्दर कैसा शौर है |
मौत नहीं आ सकती मुझे मंजिल से पहले
साँसों से मेरी ज़िन्दगी की बंधी डोर है |
कैसे माँगू भगवान् से अपने लिए कुछ
जिसको तुम भगवान् कहते ये भगवान् और है |

Thursday, 4 February 2016

मयखाना, शराब और मौत मेरी दवाई है



खुशियाँ मेरी मुझसे मुह मोड़ कर गई
बीच सफ़र में अकेला मुझे छोड़कर गई
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जिसने किया था वादा मुझसे सात जन्मो का
वो मुझसे इसी जन्म में रिश्ता तोड़ कर गई
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टूट गए अब मेरे ख्वाबों के शीश-महल
जाते जाते गम से मेरा नाता जोड़ कर गई
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मयखाना, शराब और मौत मेरी दवाई है
इन्ही आसरों के सहारे वो मुझे छोड़ कर गई
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Wednesday, 3 February 2016

हाथ रोज उठता हूँ दुआओ की खातिर



रातें सोती हैं मैं कहाँ सो पाता हूँ
बैचेन रहता हूँ चैन से कहाँ सो पाता हूँ
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सिसकियों की आवाज़ गूंजती है कानो में
टपकती है आँखें पर मैं कहाँ रो पाता हूँ
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चलता रहता हूँ थकावट ही नहीं होती
पर मंजिल तक मैं कहाँ जा पाता हूँ
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महफिलों से आते हैं बुलावे रोज ही मुझको
मैं गम सुनाता हूँ महफ़िल में कहाँ छा पाता हूँ
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हाथ रोज उठता हूँ दुआओ की खातिर मैं
पर ख़ुदा से बात अपनी कहाँ कह पाता हूँ
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लेटा हूँ मैं अर्थी पर लगा दो आग मुझको
पाना है ख़ुदा को देखो कहाँ कब पाता हूँ
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