Thursday, 10 March 2016

दिल तो कब का नीलाम हो चूका



मैंने यहाँ क्या क्या नहीं होते देखा
जो मेरा था किसी और का होते देखा |
हँसता रहता था जो महफिलों में हरदम
तनहा अकेले में उसे टूटकर रोते देखा |
जो बच बचकर निकलता था हरेक राह से
उसको भी मैंने हादसों का शिकार होते देखा |
दिल तो कब का नीलाम हो चूका था उसका
आज उसकी जान को कतरा-कतरा निकलते देखा |
जो रातों में भी सोया ना करता था कभी
आज उसको कब्र में आराम से सोते देखा |
“प्रवेश कुमार”

Tuesday, 8 March 2016

बद्दुआ कमाते रहे तमाम उम्र



इंसानों के साथ ये व्यवहार कैसा है,
जब बाँटी नही खुशियाँ तो ये त्योहार कैसा है।
मजदूरों के चेहरे पे है पतझड़ ही पतझड़,
फिर ये मिल का सफल व्यापार कैसा है।
जवानी से पहले ही झुक गया शरीर,
कैसी इमारत है ये इसका आधार कैसा है।
बद्दुआ कमाते रहे तमाम उम्र तुम,
फिर कहते हो ख़ुदा का कारोबार कैसा है।

Monday, 7 March 2016

सफर-ए-जिन्दगी में मौत से खेल करता हूँ



मैं गमों को सुना अनसुना करता हूँ,
अगर पीता हूँ तो क्या बुरा करता हूँ।
जिंदा हूँ इसमें भी तुम्हें तकलीफ़ है,
मैं कौन सा तुम्हारे पांव पे पांव धरता हूँ।
उसकी आँखों से पी है जब से मैंने शराब,
हर कोई कहता है कि मैं नशे में रहता हूँ।
उसका चेहरा मेरी आँखों से नही जाता,
अब हर शै में उसको बसाकर रखता हूँ।
मकतल में आकर भी सही सलामत हूँ,
ऐ मेरे ख़ुदा मैं तुझे सजदा करता हूँ।
दे दो बेशक बेहिसाब गम मुझे फिक्र नहीं,
मैं हाथ में शराब की बोतल रखता हूँ।
आँधी तूफानों मुझे डराने की कोशिश मत करो,
मैं सफर--जिन्दगी में मौत से खेल करता हूँ।