Monday, 7 March 2016

सफर-ए-जिन्दगी में मौत से खेल करता हूँ



मैं गमों को सुना अनसुना करता हूँ,
अगर पीता हूँ तो क्या बुरा करता हूँ।
जिंदा हूँ इसमें भी तुम्हें तकलीफ़ है,
मैं कौन सा तुम्हारे पांव पे पांव धरता हूँ।
उसकी आँखों से पी है जब से मैंने शराब,
हर कोई कहता है कि मैं नशे में रहता हूँ।
उसका चेहरा मेरी आँखों से नही जाता,
अब हर शै में उसको बसाकर रखता हूँ।
मकतल में आकर भी सही सलामत हूँ,
ऐ मेरे ख़ुदा मैं तुझे सजदा करता हूँ।
दे दो बेशक बेहिसाब गम मुझे फिक्र नहीं,
मैं हाथ में शराब की बोतल रखता हूँ।
आँधी तूफानों मुझे डराने की कोशिश मत करो,
मैं सफर--जिन्दगी में मौत से खेल करता हूँ।

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