इंसानों के साथ ये व्यवहार कैसा है,
जब बाँटी नही खुशियाँ तो ये त्योहार कैसा है।
मजदूरों के चेहरे पे है पतझड़ ही पतझड़,
फिर ये मिल का सफल व्यापार कैसा है।
जवानी से पहले ही झुक गया शरीर,
कैसी इमारत है ये इसका आधार कैसा है।
बद्दुआ कमाते रहे तमाम उम्र तुम,
फिर कहते हो ख़ुदा का कारोबार कैसा है।
जब बाँटी नही खुशियाँ तो ये त्योहार कैसा है।
मजदूरों के चेहरे पे है पतझड़ ही पतझड़,
फिर ये मिल का सफल व्यापार कैसा है।
जवानी से पहले ही झुक गया शरीर,
कैसी इमारत है ये इसका आधार कैसा है।
बद्दुआ कमाते रहे तमाम उम्र तुम,
फिर कहते हो ख़ुदा का कारोबार कैसा है।
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