Friday, 11 March 2016

ख़ुदा मेरे हक में फैसला करदे


गरीब की गरीबी पर हँसने वाले ,
मर जाते हैं कभी-कभी डसने वाले।
 
दोगलों से दोस्ती में एहतियात बरतना ,
वो वक्त पर नहीं कभी काम आने वाले।
अमीरी रात सड़कों पे अधनंगी घूमती है,
यही कमाया तो क्या कमाया,कमाने वाले।
हाड मांस का पुतला बनाया जान डाल दी,
उसके बाद क्यों हमें भूल गया बनाने वाले।
अब भी वक्त है ख़ुदा मेरे हक में फैसला करदे ,
बाद में हम नही तेरे कहने से कहीं भी जाने वाले।

Thursday, 10 March 2016

दिल तो कब का नीलाम हो चूका



मैंने यहाँ क्या क्या नहीं होते देखा
जो मेरा था किसी और का होते देखा |
हँसता रहता था जो महफिलों में हरदम
तनहा अकेले में उसे टूटकर रोते देखा |
जो बच बचकर निकलता था हरेक राह से
उसको भी मैंने हादसों का शिकार होते देखा |
दिल तो कब का नीलाम हो चूका था उसका
आज उसकी जान को कतरा-कतरा निकलते देखा |
जो रातों में भी सोया ना करता था कभी
आज उसको कब्र में आराम से सोते देखा |
“प्रवेश कुमार”

Tuesday, 8 March 2016

बद्दुआ कमाते रहे तमाम उम्र



इंसानों के साथ ये व्यवहार कैसा है,
जब बाँटी नही खुशियाँ तो ये त्योहार कैसा है।
मजदूरों के चेहरे पे है पतझड़ ही पतझड़,
फिर ये मिल का सफल व्यापार कैसा है।
जवानी से पहले ही झुक गया शरीर,
कैसी इमारत है ये इसका आधार कैसा है।
बद्दुआ कमाते रहे तमाम उम्र तुम,
फिर कहते हो ख़ुदा का कारोबार कैसा है।