Monday, 25 April 2016

तू जन्नत मे जाए या तुझे दोज़ख़ मिले



क्यों तू मुझसे इतना घबराता है,
कोई किसी का नसीब नहीं खाता है।
मुझे भी हुनर अपना मालूम है,
तुझे जो पता है वो मुझ को भी आता है।
तू जन्नत मे जाए या तुझे दोज़ख़ मिले ,
जो छुप नहीं सकता क्यों उसे छिपाता है।
लोगो को पहचानना सीखना है तो सुन ,
जो चोर हो वो कब खुद को चोर बताता है।

Sunday, 17 April 2016

मगर हर औरत अच्छी नहीं होती



किसी के आगे झुको तो एक हद रहे ,
गुलामी किसी भी सूरत में अच्छी नहीं होती।
गिराने वाले बहुत मिलते हैं मंजिल--सफ़र में,
हर राहगीर से यूँ दोस्ती अच्छी नहीं होती।
जब गर्म हो बहसों का बाज़ार चुप ही रहना,
हर वक़्त जुबान खोलना बात अच्छी नहीं होती।
एक कान से सुनना दूसरे से निकाल देना जरूरी है,
हर किसी की बात मानना आदत अच्छी नहीं होती।
आलोचना प्रशंसा दोनों जरूरी हैं मगर अनुपात में,
बिना विवाद की जिन्दगी भी अच्छी नहीं होती।
आलोचना पे चुप रहना प्रशंसा पे मत उछलना,
बिगड़ी हुई बात दोनों ही हालात में अच्छी नहीं होती।
प्यार में बन जाओ कुछ तो ठीक वरना बहुत संभल के, 
देखने में भले हो मगर हर औरत अच्छी नहीं होती। 

"प्रवेश कुमार"

Friday, 15 April 2016

राज छिपाना इश्क़ में सनम गद्दारी है



कुछ तो है जिस की हम से परदादारी है,
राज छिपाना इश्क़ में सनम गद्दारी है।
कर रहे हो सितममगर ये याद रखना ,
फिर हमसे ना कहना ये कैसी दिलदारी है।
इश्क़ में माना कुछ गलतियां हो जाती हैं,
मगर इश्क़ की एक शर्त वफादारी है।
तुममें वफा है तब तक तो तुम मेरी हो,
बेवफाई बर्दाश्त ना होगी हम में भी खुद्दारी है।
हम दोनों ही एक-दूसरे के दिल के मेहमाँ हैं,
दिल के मेहमान हैं तब तक ही खातिरदारी है।
तुम साथ निभाने का वादा करो फिर देखो,
हम जाँ भी दे देंगे ये हमारी दावेदारी है।