Monday, 25 April 2016

तू जन्नत मे जाए या तुझे दोज़ख़ मिले



क्यों तू मुझसे इतना घबराता है,
कोई किसी का नसीब नहीं खाता है।
मुझे भी हुनर अपना मालूम है,
तुझे जो पता है वो मुझ को भी आता है।
तू जन्नत मे जाए या तुझे दोज़ख़ मिले ,
जो छुप नहीं सकता क्यों उसे छिपाता है।
लोगो को पहचानना सीखना है तो सुन ,
जो चोर हो वो कब खुद को चोर बताता है।

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