किसी के आगे झुको तो एक हद रहे ,
गुलामी किसी भी सूरत में अच्छी नहीं होती।
गिराने वाले बहुत मिलते हैं मंजिल-ए-सफ़र में,
हर राहगीर से यूँ दोस्ती अच्छी नहीं होती।
जब गर्म हो बहसों का बाज़ार चुप ही रहना,
हर वक़्त जुबान खोलना बात अच्छी नहीं होती।
एक कान से सुनना दूसरे से निकाल देना जरूरी है,
हर किसी की बात मानना आदत अच्छी नहीं होती।
आलोचना प्रशंसा दोनों जरूरी हैं मगर अनुपात में,
बिना विवाद की जिन्दगी भी अच्छी नहीं होती।
आलोचना पे चुप रहना प्रशंसा पे मत उछलना,
बिगड़ी हुई बात दोनों ही हालात में अच्छी नहीं होती।
प्यार में बन जाओ कुछ तो ठीक वरना बहुत संभल के,
गुलामी किसी भी सूरत में अच्छी नहीं होती।
गिराने वाले बहुत मिलते हैं मंजिल-ए-सफ़र में,
हर राहगीर से यूँ दोस्ती अच्छी नहीं होती।
जब गर्म हो बहसों का बाज़ार चुप ही रहना,
हर वक़्त जुबान खोलना बात अच्छी नहीं होती।
एक कान से सुनना दूसरे से निकाल देना जरूरी है,
हर किसी की बात मानना आदत अच्छी नहीं होती।
आलोचना प्रशंसा दोनों जरूरी हैं मगर अनुपात में,
बिना विवाद की जिन्दगी भी अच्छी नहीं होती।
आलोचना पे चुप रहना प्रशंसा पे मत उछलना,
बिगड़ी हुई बात दोनों ही हालात में अच्छी नहीं होती।
प्यार में बन जाओ कुछ तो ठीक वरना बहुत संभल के,
देखने
में भले हो मगर हर औरत अच्छी नहीं होती।
"प्रवेश
कुमार"
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